ग़ज़ल
जब भी बारिश में....
-अरुण मिश्र.
जब भी बारिश में, भीगता है तन।
तेरी यादों में, डूबता है मन॥
बिजलियाँ हैं कि, ये अदायें हैं?
रूप तेरा नया कि, है सावन??
ऐसा लगता है, पास बैठे हो।
बादलों की, किये हुये चिलमन॥
नम हवायें हैं, आँख है मेरी।
तर दिशायें हैं, है तिरा दामन॥
अक्स तेरा, घुला फिज़ाओं में।
आज मौसम है, हो गया दरपन॥
बूँदें गिरती हैं, बज रही पायल।
बर्क लहरायी, है हिली करधन॥
मेघ गरजे, तो और भी लिपटीं।
तेरी यादों ने, धर लिया है तन॥
सूँघता फिरता हूँ, हवाओं में।
मैं वही, खुश्बू-ए-गुलाब-बदन॥
या तो दीवाना, हो गया हूँ 'अरुन'।
या तो फिर, है नहीं गया बचपन॥
*
जब भी बारिश में....
-अरुण मिश्र.
जब भी बारिश में, भीगता है तन।
तेरी यादों में, डूबता है मन॥
बिजलियाँ हैं कि, ये अदायें हैं?
रूप तेरा नया कि, है सावन??
ऐसा लगता है, पास बैठे हो।
बादलों की, किये हुये चिलमन॥
नम हवायें हैं, आँख है मेरी।
तर दिशायें हैं, है तिरा दामन॥
अक्स तेरा, घुला फिज़ाओं में।
आज मौसम है, हो गया दरपन॥
बूँदें गिरती हैं, बज रही पायल।
बर्क लहरायी, है हिली करधन॥
मेघ गरजे, तो और भी लिपटीं।
तेरी यादों ने, धर लिया है तन॥
सूँघता फिरता हूँ, हवाओं में।
मैं वही, खुश्बू-ए-गुलाब-बदन॥
या तो दीवाना, हो गया हूँ 'अरुन'।
या तो फिर, है नहीं गया बचपन॥
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