ग़ज़ल
आ जाये कभी चैन-ओ-आराम तो कहना....
-अरुण मिश्र.
छोड़ा जो अधूरा हो कोई काम तो कहना।
औ' इसका कभी माँगा हो इन'आम, तो कहना।।
कुछ दिन को मुझे, घर में ज़रा रख के तो देखो।
मैं घर का बदल दूँ न तेरे नाम, तो कहना।।
ग़ुल आँखों ही आँखों में करें , ढेरों इशारे।
मारे न गए सैकड़ों गुलफ़ाम , तो कहना।।
कुछ ग़ुल ने कान में कहा, बुलबुल चहक उठी।
गुलशन में न हो जाये राज़ आम, तो कहना।।
दे कर दवा-ये-दर्दे-दिल, हँस कर कहे, 'अरुन'।
आ जाये कभी चैन - ओ - आराम, तो कहना।।
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