इन्द्रधनुष पिउ का मन रंग------
-अरुण मिश्र.
बाहर] बुला रहे बादल।
पुरवा] बजा रही साँकल।।
मीत पपीहा] कोयल] मोर।
विरह की मारी को मत छल।।
या तो सच हों तेरे बोल।
नहीं तो पंख जाँय तेरे जल।।
बरखा की अँधियारी रात।
कैसे आवे चाँद निकल??
पिया बिना] न जाय जिया।
आठों याम हिया बेकल।।
सावन हो या हो फागुन।
उसके बिन] हर रितु निष्फल।।
इन्द्रधनुष] पिउ का मन रंग।
लखे 'अरुन', दे घर को चल।।
*
ग़ज़ल, (2008))
-अरुण मिश्र.
बाहर] बुला रहे बादल।
पुरवा] बजा रही साँकल।।
मीत पपीहा] कोयल] मोर।
विरह की मारी को मत छल।।
या तो सच हों तेरे बोल।
नहीं तो पंख जाँय तेरे जल।।
बरखा की अँधियारी रात।
कैसे आवे चाँद निकल??
पिया बिना] न जाय जिया।
आठों याम हिया बेकल।।
सावन हो या हो फागुन।
उसके बिन] हर रितु निष्फल।।
इन्द्रधनुष] पिउ का मन रंग।
लखे 'अरुन', दे घर को चल।।
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ग़ज़ल, (2008))
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