शनिवार, 24 नवंबर 2012

हम तो यां आये हैं अश्क़ों का उतर के दरिया......

ग़ज़ल 

हम तो यां आये हैं अश्क़ों का उतर के दरिया......

-अरुण मिश्र.



हम तो यां आये हैं,  अश्क़ों का, उतर के दरिया।
हमसे क्या माँगेगा,  बारिश में उभर के दरिया??


जितनी  ही  दूरी,  समन्दर  से  है,  घटती  जाये।
उतना ही, और भी, थम-थम के है, सरके दरिया।।


है  जिन्हें  जाना,  उन्हें  फि़क्र  क्यूँ  तुम्हारी  हो?
घाट  का  हाल,  कब  पूछे  है,  ठहर  के  दरिया??


क्या कहूँ,  ऐसी मुहब्बत को,  और कि़स्मत को?
है   उनका   हर्फ़े - वफ़ा,  और   है   वर्के़ - दरिया।।


जो  बदज़ुबान  है,  औ’  बदगु़मान भी है  ‘अरुन’।
नेकि़याँ   उससे  भी   करके,  करो  ग़र्के - दरिया।।
                                           *

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