ग़ज़ल
तुम्हारा काँधा हमें आज फिर रुलावेगा.......
-अरुण मिश्र.
तुम्हारा काँधा हमें आज फिर रुलावेगा.......
-अरुण मिश्र.
तुम्हारा काँधा हमें, आज फिर रुलावेगा ।
हाल पूछोगे तो , आजार याद आवेगा ।।
न वज्हे-तर्के-तअल्लुक़, बयां करो सब से ।
कि इससे मुझको, तेरा प्यार, याद आवेगा ।।
ये क़फ़स सोने का, मैंने है, खुद पसंद किया ।
मुझे पता था, वो ज़ालिम, बहुत सतावेगा ।।
दिल मेरा चीर के, ख़ुद देखेगा अपनी सूरत ।
मेरे कहे से भला, क्यूँ वो मान जावेगा ।।
हस्ती-ए-हुस्न तो, यूँ ही हुबाब जैसी है ।
ख़ूब पर दावा है, हस्ती मेरी मिटावेगा ।।
'अरुन' सुलावे; पिला चाँद, चाँदनी की शराब ।
अब हमें भोर में, ख़ुर्शीद ही उठावेगा ।।
*
हाल पूछोगे तो , आजार याद आवेगा ।।
न वज्हे-तर्के-तअल्लुक़, बयां करो सब से ।
कि इससे मुझको, तेरा प्यार, याद आवेगा ।।
ये क़फ़स सोने का, मैंने है, खुद पसंद किया ।
मुझे पता था, वो ज़ालिम, बहुत सतावेगा ।।
दिल मेरा चीर के, ख़ुद देखेगा अपनी सूरत ।
मेरे कहे से भला, क्यूँ वो मान जावेगा ।।
हस्ती-ए-हुस्न तो, यूँ ही हुबाब जैसी है ।
ख़ूब पर दावा है, हस्ती मेरी मिटावेगा ।।
'अरुन' सुलावे; पिला चाँद, चाँदनी की शराब ।
अब हमें भोर में, ख़ुर्शीद ही उठावेगा ।।
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