शुक्रवार, 9 नवंबर 2012

तुम्हारा काँधा हमें आज फिर रुलावेगा.......

ग़ज़ल 

तुम्हारा काँधा हमें आज फिर रुलावेगा.......

-अरुण मिश्र.

तुम्हारा  काँधा   हमें,  आज  फिर   रुलावेगा ।
हाल   पूछोगे   तो ,   आजार   याद   आवेगा ।।

न  वज्हे-तर्के-तअल्लुक़,  बयां करो  सब  से ।  
कि इससे  मुझको,  तेरा प्यार,  याद आवेगा ।।

ये क़फ़स सोने का, मैंने है,  खुद पसंद किया ।
मुझे  पता था,  वो ज़ालिम,  बहुत  सतावेगा ।।

दिल मेरा चीर के,  ख़ुद देखेगा  अपनी सूरत ।
मेरे  कहे  से  भला,   क्यूँ  वो   मान  जावेगा ।।

हस्ती-ए-हुस्न   तो,   यूँ   ही  हुबाब  जैसी  है ।
ख़ूब  पर  दावा  है,   हस्ती   मेरी   मिटावेगा ।।

'अरुन' सुलावे; पिला चाँद, चाँदनी की शराब ।
अब  हमें   भोर   में,    ख़ुर्शीद   ही    उठावेगा ।। 
                                       * 









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