https://youtu.be/uOFWKSViC2w
तुमही संग प्रीत लगाई
चोरी-चोरी
मैं तो बावरी समझ अनाड़ी
निर्दयी श्याम तो को लाज न आई
बस जात प्रेम विष मृदु मन मेरो
वहाँ जाओ जहाँ रैन बिताई
https://youtu.be/uOFWKSViC2w
https://youtu.be/4YZjkaACB3o
https://youtu.be/DazIiDUveGs
किसी रंजिश को हवा दो कि मैं ज़िंदा हूं अभी
मेरे रुकते ही मिरी सांसें भी रुक जाएंगी
मुझ को एहसास दिला दो कि मैं ज़िंदा हूं अभी
फ़ासले और बढ़ा दो कि मैं ज़िंदा हूं अभी
ज़हर पीने की तो आदत थी ज़माने वालो
अब कोई और दवा दो कि मैं ज़िंदा हूं अभी
चलती राहों में यूंही आंख लगी है 'फ़ाकिर'
भीड़ लोगों की हटा दो कि मैं ज़िंदा हूं अभी
https://youtu.be/5Z6aKKuq_RE
English Translation :
https://youtu.be/ItnFNSfzfgY
https://youtu.be/_Xusaxsor74
डांसी ढुंग में घुरी गया मैं, चौकोड़ी के गध्यार में।
परुलि तेरे प्यार मेँ, रड़ गये हम कच्यार में।।
दिल मैं अपना हार गया, परुलि तुझसे प्यार हुआ ।
तू भी अपना घर बना ले दिल के मेरे उड्यार मेँ ।
परुलि तेरे प्यार मेँ रड़ गये हम कच्यार मेँ ।।
तुझे देखकर अलजि गया, भली कै मैं पगलि गया।
तेरा रस्ता देख रहा हूँ बांजांणि के धार मेँ ।
परुलि तेरे प्यार मेँ रड़ गये हम कच्यार मेँ ।।
तेरे घर मेँ आया था, चांण पकौड़ी लाया था।
तेरे बोज्यू ने जांठ दिखाई, छिपना पड़ा भकार मेँ।।
परुलि तेरे प्यार मेँ रड़ गये हम कच्यार मेँ।।
डांसी ढुंग में घुरी गया- कठोर पत्थर में गिर गया
चौकोड़ी के गध्यार - चौकौड़ी के गधेरे
रड़ गये - फिसल गये
कच्यार - कीचड़
उड्यार - गुफा
अलजि गया - उलझ गया
बांजांणि के धार - बांझ के जंगल के टाप (ridge) पर
चांण पकौड़ी - चने की पकौड़ी
जांठ - डंडा
भकार - अनाज रखने की कोठरी
(शब्दार्थ, श्री विनोद चंद्र पंत जी के सौजन्य से )
https://youtu.be/e3p3xKjFUfQ
https://youtu.be/gaxXqlSWaSY
https://youtu.be/qbTnHtRgyak
तुम जो आये तो बहारों पे शबाब आया है
इन नज़ारों पे भी हल्का सा नशा छाया है
अपनी आँखों का नशा और भी बढ़ जाने दो
अपनी ज़ुल्फें मेरे शानों पे...
सुर्ख होठों पे गुलाबों का गुमाँ होता है
ऐसा मंज़र हो जहाँ, होश कहाँ रहता है
ये हसीं होंठ मेरे होठों से मिल जाने दो
अपनी ज़ुल्फें मेरे शानों पे...
https://youtu.be/QUhyxQ5ij-c
बंदौ चरन-सरोज तिहारे।
सुंदर स्याम कमल-दल-लोचन, ललित त्रिभंगी प्रान-पियारे ।।
जे पद-पदुम सदा सिव के धन, सिंधु-सुता उर तैं नहिं टारे ।
जे पद-पदुम तात-रिस-त्रासत, मन-बच-क्रम प्रहलाद सँभारे ।।
जे पद-पदुम-परस जल-पावन-सुरसरि-दरस कटत अघ भारे ।
जे पद-पदुम-परस रिषि-पतिनी, बलि, नृग, ब्याध, पतित बहु तारे ।।
जे पद-पदुम रमत बृंदाबन अहि-सिर धरि, अगनित रिपु मारे ।
जे पद-पदुम परसि ब्रज-भामिनी सरबस दै, सुत-सदन बिसारे ।।
जे पद-पदुम रमत पांडव-दल, दूत भए, सब काज सँवारे ।
सूरदास तेई पद-पंकज, त्रिबिध-ताप-दुख-हरन हमारे ।।
प्राणप्यारे त्रिभंगसुन्दर कमलदललोचन श्यामसुन्दर ! मैं आपके
चरणकमलों की वन्दना करता हूँ । (प्रभो ! आपके) जो चरणकमल
भगवान् शंकर के सदा (परम) धन हैं, (जिन्हें) सिन्धुसुता लक्ष्मी जी
अपने हृदय से कभी दूर नहीं करतीं, (अपने) पिता हिरण्यकशिपु के
क्रोध से कष्ट पाते हुए भी प्रह्लाद जी ने जिन पादपद्मों को मन, वचन
और कर्म से सँभाल रखा (घोर कष्ट में भी जिनको वे भूले नहीं), जिन
पादकमलों के स्पर्श से पवित्र हुआ जल (पादोदक) ही भगवती गंगा हैं,
जिनका दर्शन करने से ही महान् पाप भी नष्ट हो जाते हैं, जिन चरणों को
स्पर्श करके ऋषि-पत्नी अहल्या तथा दैत्यराज बलि, राजा नृग, व्याध एवं
(दूसरे भी) बहुत-से पतित मुक्त हो गये, जो चरणकमल वृन्दावन में विचरण
करते थे, (जिन्हें) कालियनाग के सिरपर (आपने) धरा और (जिन चरणों से
व्रज में चलकर) अगणित शत्रुओं का संहार किया, जिन चरणकमलों का
स्पर्श पाकर व्रजगोपियों ने (उनपर अपना) सर्वस्व न्योछावर कर दिया तथा
घर-पुत्रादिकों को भी विस्मृत हो गयीं, जिन चरणकमलों से (आप) पाण्डवदल
में घूमते रहे, उनके दूत बने तथा उनके सब काम बनाये, सूरदास जी कहते हैं
कि (हे श्यामसुन्दर !) आपके वही चरणकमल हमारे (आधिभौतिक,
आधिदैविक एवं आध्यात्मिक) तीनों तापों को तथा समस्त दुःखों को हरण
करनेवाले हैं ।
https://youtu.be/iJEKrJObgno?si=tnrkG0H5T63txIfu
आपको भूल जाएँ हम इतने तो बेवफ़ा नहीं
आपसे क्या गिला करे आपसे कुछ गिला नहीं
(गिला = शिकायत, उलाहना)
शीशा-ए-दिल को तोड़ना उनका तो एक खेल है
हमसे ही भूल हो गयी उनकी कोई ख़ता नहीं
काश वो अपने ग़म मुझे दे दें तो कुछ सुकूँ मिले
वो कितना बद-नसीब है ग़म भी जिसे मिला नहीं
जुर्म है गर वफ़ा तो क्या क्यूँ मैं वफ़ा को छोड़ दूँ
कहते हैं इस गुनाह की होती कोई सज़ा नहीं
हम तो समझ रहे थे ये तुम मिले प्यार मिल गया
एक तेरे दर्द के सिवा हम को तो कुछ मिला नहीं
-तस्लीम फ़ाज़ली
https://youtu.be/rvVu42qH8FU
भवानि स्तोतुं त्वां प्रभवति चतुर्भिर्न वदनैः
प्रजानामीशानस्त्रिपुरमथनः पंचभिरपि ।
न षड्भिः सेनानीर्दशशतमुखैरप्यहिपतिः
तदान्येषां केषां कथय कथमस्मिन्नवसरः ॥ 1॥
घृतक्षीरद्राक्षामधुमधुरिमा कैरपि पदैः
विशिष्यानाख्येयो भवति रसनामात्र विषयः ।
तथा ते सौंदर्यं परमशिवदृङ्मात्रविषयः
कथंकारं ब्रूमः सकलनिगमागोचरगुणे ॥ 2॥
मुखे ते तांबूलं नयनयुगले कज्जलकला
ललाटे काश्मीरं विलसति गले मौक्तिकलता ।
स्फुरत्कांची शाटी पृथुकटितटे हाटकमयी
भजामि त्वां गौरीं नगपतिकिशोरीमविरतम् ॥ 3॥
विराजन्मंदारद्रुमकुसुमहारस्तनतटी
नदद्वीणानादश्रवणविलसत्कुंडलगुणा
नतांगी मातंगी रुचिरगतिभंगी भगवती
सती शंभोरंभोरुहचटुलचक्षुर्विजयते ॥ 4॥
नवीनार्कभ्राजन्मणिकनकभूषणपरिकरैः
वृतांगी सारंगीरुचिरनयनांगीकृतशिवा ।
तडित्पीता पीतांबरललितमंजीरसुभगा
ममापर्णा पूर्णा निरवधिसुखैरस्तु सुमुखी ॥ 5॥
हिमाद्रेः संभूता सुललितकरैः पल्लवयुता
सुपुष्पा मुक्ताभिर्भ्रमरकलिता चालकभरैः ।
कृतस्थाणुस्थाना कुचफलनता सूक्तिसरसा
रुजां हंत्री गंत्री विलसति चिदानंदलतिका ॥ 6॥
सपर्णामाकीर्णां कतिपयगुणैः सादरमिह
श्रयंत्यन्ये वल्लीं मम तु मतिरेवं विलसति ।
अपर्णैका सेव्या जगति सकलैर्यत्परिवृतः
पुराणोऽपि स्थाणुः फलति किल कैवल्यपदवीम् ॥ 7॥
विधात्री धर्माणां त्वमसि सकलाम्नायजननी
त्वमर्थानां मूलं धनदनमनीयांघ्रिकमले ।
त्वमादिः कामानां जननि कृतकंदर्पविजये
सतां मुक्तेर्बीजं त्वमसि परमब्रह्ममहिषी ॥ 8॥
प्रभूता भक्तिस्ते यदपि न ममालोलमनसः
त्वया तु श्रीमत्या सदयमवलोक्योऽहमधुना ।
पयोदः पानीयं दिशति मधुरं चातकमुखे
भृशं शंके कैर्वा विधिभिरनुनीता मम मतिः ॥ 9॥
कृपापांगालोकं वितर तरसा साधुचरिते
न ते युक्तोपेक्षा मयि शरणदीक्षामुपगते ।
न चेदिष्टं दद्यादनुपदमहो कल्पलतिका
विशेषः सामान्यैः कथमितरवल्लीपरिकरैः ॥ 10॥
महांतं विश्वासं तव चरणपंकेरुहयुगे
निधायान्यन्नैवाश्रितमिह मया दैवतमुमे ।
तथापि त्वच्चेतो यदि मयि न जायेत सदयं
निरालंबो लंबोदरजननि कं यामि शरणम् ॥ 11॥
अयः स्पर्शे लग्नं सपदि लभते हेमपदवीं
यथा रथ्यापाथः शुचि भवति गंगौघमिलितम् ।
तथा तत्तत्पापैरतिमलिनमंतर्मम यदि
त्वयि प्रेम्णासक्तं कथमिव न जायेत विमलम् ॥ 12॥
त्वदन्यस्मादिच्छाविषयफललाभे न नियमः
त्वमर्थानामिच्छाधिकमपि समर्था वितरणे ।
इति प्राहुः प्रांचः कमलभवनाद्यास्त्वयि मनः
त्वदासक्तं नक्तं दिवमुचितमीशानि कुरु तत् ॥ 13॥
स्फुरन्नानारत्नस्फटिकमयभित्तिप्रतिफल
त्त्वदाकारं चंचच्छशधरकलासौधशिखरम् ।
मुकुंदब्रह्मेंद्रप्रभृतिपरिवारं विजयते
तवागारं रम्यं त्रिभुवनमहाराजगृहिणि ॥ 14॥
निवासः कैलासे विधिशतमखाद्याः स्तुतिकराः
कुटुंबं त्रैलोक्यं कृतकरपुटः सिद्धिनिकरः ।
महेशः प्राणेशस्तदवनिधराधीशतनये
न ते सौभाग्यस्य क्वचिदपि मनागस्ति तुलना ॥ 15॥
वृषो वृद्धो यानं विषमशनमाशा निवसनं
श्मशानं क्रीडाभूर्भुजगनिवहो भूषणविधिः
समग्रा सामग्री जगति विदितैव स्मररिपोः
यदेतस्यैश्वर्यं तव जननि सौभाग्यमहिमा ॥ 16॥
अशेषब्रह्मांडप्रलयविधिनैसर्गिकमतिः
श्मशानेष्वासीनः कृतभसितलेपः पशुपतिः ।
दधौ कंठे हालाहलमखिलभूगोलकृपया
भवत्याः संगत्याः फलमिति च कल्याणि कलये ॥ 17॥
त्वदीयं सौंदर्यं निरतिशयमालोक्य परया
भियैवासीद्गंगा जलमयतनुः शैलतनये ।
तदेतस्यास्तस्माद्वदनकमलं वीक्ष्य कृपया
प्रतिष्ठामातन्वन्निजशिरसिवासेन गिरिशः ॥ 18॥
विशालश्रीखंडद्रवमृगमदाकीर्णघुसृण
प्रसूनव्यामिश्रं भगवति तवाभ्यंगसलिलम् ।
समादाय स्रष्टा चलितपदपांसून्निजकरैः
समाधत्ते सृष्टिं विबुधपुरपंकेरुहदृशाम् ॥ 19॥
वसंते सानंदे कुसुमितलताभिः परिवृते
स्फुरन्नानापद्मे सरसि कलहंसालिसुभगे ।
सखीभिः खेलंतीं मलयपवनांदोलितजले
स्मरेद्यस्त्वां तस्य ज्वरजनितपीडापसरति ॥ 20॥
॥ इति श्रीमच्छंकराचार्यविरचिता आनंदलहरी संपूर्णा ॥
https://youtu.be/UyCWhA24e1g
पानी में मीन पियासी, मोहि सुन-सुन आवे हाँसी।
आतम ज्ञान बिना नर भटके, कोई मथुरा कोई काशी।
मिरगा नाभि बसे कस्तूरी, बन बन फिरत उदासी।।
पानी में मीन पियासी, मोहि सुन-सुन आवे हाँसी।।
जल-बिच कमल कमल बिच कलियाँ तां पर भँवर निवासी।
सो मन बस त्रैलोक्य भयो हैं, यति सती सन्यासी।
पानी में मीन पियासी, मोहि सुन-सुन आवे हाँसी।।
है हाजिर तेहि दूर बतावें, दूर की बात निरासी।
कहै कबीर सुनो भाई साधो, गुरु बिन भरम न जासी।
The Fish are thirsty in the water; this is what makes me laugh. Without self realization, man wanders from Mathura to Kashi like the Kasturi deer who does not realize the intoxicating scent is in its own self and wanders the forest in search of it.
The One resides in your own self, the one to whom all the saints and seers pray to. Realization is in the moment and not far away. Kabir says, O brethren, without the Guru Man’s
delusion is not removed.
https://youtu.be/D-v4I5ZGXL0?si=Qx1L4HSOVPv5NNZ1
https://youtu.be/DMsvXr43vT8
https://youtu.be/UnEvzLx4gAk
https://youtu.be/wGwQBN1o7g8
मोरा रे अँगनमा चानन केरि गछिया, ताहि चढ़ि कुररए काग रे।
सोने चोंच बांधि देव तोहि बायस, जओं पिया आओत आज रे।
गावह सखि सब झूमर लोरी, मयन अराधए जाउं रे।
चओ दिसि चम्पा मओली फूलली, चान इजोरिया राति रे।
कइसे कए हमे मदन अराधव, होइति बड़ि रति साति रे।
https://youtu.be/XFhh5CQKSTs