https://youtu.be/e3p3xKjFUfQ
ये आरज़ू थी तुझे गुल के रू-ब-रू करते
पयाम्बर न मयस्सर हुआ तो ख़ूब हुआ
ज़बान-ए-ग़ैर से क्या शरह-ए-आरज़ू करते
मिरी तरह से मह-ओ-मेहर भी हैं आवारा
किसी हबीब की ये भी हैं जुस्तुजू करते
न पूछ आलम-ए-बरगश्ता-तालई 'आतिश'
बरसती आग जो बाराँ की आरज़ू करते
हम और बुलबुल-ए-बेताब गुफ़्तुगू करते
पयाम्बर न मयस्सर हुआ तो ख़ूब हुआ
ज़बान-ए-ग़ैर से क्या शरह-ए-आरज़ू करते
मिरी तरह से मह-ओ-मेहर भी हैं आवारा
किसी हबीब की ये भी हैं जुस्तुजू करते
न पूछ आलम-ए-बरगश्ता-तालई 'आतिश'
बरसती आग जो बाराँ की आरज़ू करते
पयाम्बर - Messenger
ज़बान-ए-ग़ैर - Someone else's tongue
शरह-ए-आरज़ू - Explanation of desire
मह-ओ-मेहर - Moon and Sun
हबीब - Friend / Loved one
आलम-ए-बरगश्ता-तालई - The state of adverse destiny
बाराँ - Rains
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