बुधवार, 18 सितंबर 2024

ये आरज़ू थी तुझे गुल के रू-ब-रू करते.../ शायर : हैदर अली आतिश / गायन : ज़हीर अब्बास

https://youtu.be/e3p3xKjFUfQ 


ये आरज़ू थी तुझे गुल के रू-ब-रू करते
हम और बुलबुल-ए-बेताब गुफ़्तुगू करते

पयाम्बर न मयस्सर हुआ तो ख़ूब हुआ
ज़बान-ए-ग़ैर से क्या शरह-ए-आरज़ू करते

मिरी तरह से मह-ओ-मेहर भी हैं आवारा
किसी हबीब की ये भी हैं जुस्तुजू करते

न पूछ आलम-ए-बरगश्ता-तालई 'आतिश'
बरसती आग जो बाराँ की आरज़ू करते

पयाम्बर - Messenger 
ज़बान-ए-ग़ैर - Someone else's tongue 
शरह-ए-आरज़ू  - Explanation of desire 
मह-ओ-मेहर  - Moon and Sun
हबीब  - Friend / Loved one 
आलम-ए-बरगश्ता-तालई  - The state of adverse destiny 
बाराँ - Rains

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