https://youtu.be/iJEKrJObgno?si=tnrkG0H5T63txIfu
आपको भूल जाएँ हम इतने तो बेवफ़ा नहीं
आपसे क्या गिला करे आपसे कुछ गिला नहीं
(गिला = शिकायत, उलाहना)
शीशा-ए-दिल को तोड़ना उनका तो एक खेल है
हमसे ही भूल हो गयी उनकी कोई ख़ता नहीं
काश वो अपने ग़म मुझे दे दें तो कुछ सुकूँ मिले
वो कितना बद-नसीब है ग़म भी जिसे मिला नहीं
जुर्म है गर वफ़ा तो क्या क्यूँ मैं वफ़ा को छोड़ दूँ
कहते हैं इस गुनाह की होती कोई सज़ा नहीं
हम तो समझ रहे थे ये तुम मिले प्यार मिल गया
एक तेरे दर्द के सिवा हम को तो कुछ मिला नहीं
-तस्लीम फ़ाज़ली
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