मंगलवार, 15 अक्तूबर 2024

इश्क़ में ग़ैरत-ए-जज़्बात ने रोने न दिया.../ सुदर्शन फ़ाकिर / स्वर : प्राची गिरीश



इश्क़ में ग़ैरत-ए-जज़्बात ने रोने न दिया
वर्ना क्या बात थी किस बात ने रोने न दिया

आप कहते थे कि रोने से न बदलेंगे नसीब
उम्र भर आप की इस बात ने रोने न दिया

रोने वालों से कहो उन का भी रोना रो लें
जिन को मजबूरी-ए-हालात ने रोने न दिया

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