https://youtu.be/QmIuTv9bn6Y
जय भगवति देवि नमो वरदे,
जय पापविनाशिनि बहुफलदे।
जय शुम्भनिशुम्भकपालधरे,
प्रणमामि तु देवि नरार्तिहरे॥
जय पापविनाशिनि बहुफलदे।
जय शुम्भनिशुम्भकपालधरे,
प्रणमामि तु देवि नरार्तिहरे॥
जय चन्द्रदिवाकरनेत्रधरे,
जय पावकभूषितवक्त्रवरे।
जय भैरवदेहनिलीनपरे,
जय अन्धकदैत्यविशोषकरे॥
जय महिषविमर्दिनि शूलकरे,
जय लोकसमस्तकपापहरे।
जय देवि पितामहविष्णुनते,
जय भास्करशक्रशिरोऽवनते॥
जय षण्मुखसायुधईशनुते,
जय सागरगामिनि शम्भुनुते।
जय दुःखदरिद्रविनाशकरे,
जय पुत्रकलत्रविवृद्धिकरे॥
जय देवि समस्तशरीरधरे,
जय नाकविदर्शिनि दुःखहरे।
जय व्याधिविनाशिनि मोक्षकरे,
जय वांछितदायिनि सिद्धिवरे॥
एतद्व्यासकृतं स्तोत्रं य: पठेन्नियतः शुचिः।
गृहे वा शुद्धभावेन प्रीता भगवती सदा॥
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