https://youtu.be/VuLkqWflslA
सुन री कोयल बावरी तूँ क्यूँ मल्हार गाये है?
छा रही काली घटा जिया मोरा लहराए है ।
सारे आज़ारों से बढ़के इश्क़ का आज़ार है
आफ़तों में जान-ओ-दिल का डालना बेकार है
बेवफा से दिल लगाकर क्या कोई फल पाए है?
क्या ये बीमार-ऐ-अलम इस दर्द से बच जायेगा ?
क्या यूँ ही खा खा के ग़म ये आख़िरश मर जाएगा?
ऐ मसीहा कुछ तो बोलो क्या तुम्हारी राय है?
ऐ पपीहे चुप खुदा के वास्ते हो जा ज़रा
रात सारी जा चुकी ज़ालिम तुझे क्या हो गया?
तेरे पीपी करने से वो बेवफ़ा याद आये है ।
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