सोमवार, 24 अक्टूबर 2011

बिन तुम्हारे............

.....फिर न मन पाई दिवाली 

-अरुण मिश्र 

बिन तुम्हारे,फिर न मन पाई दिवाली;
रात  भर  मैं   चाँद  को  रोता  रहा  हूँ ||

          हर   पड़ोसी   ने    सजाई    दीपमाला,
          हर तरफ बिखरा पड़ा उत्साह, रूपसि!
          एक  स्मृति - वर्तिका,  उर में जलाये,
          देखता पर मन,  तुम्हारी राह, रूपसि !!

हर   तरफ    जलते   असंख्यों   दीप, 
पर मैं रात सारी, 
मोम  सा  गलता,  जमा   होता   रहा हूँ ||

          फुलझड़ी की  जगह,  आँसू की झड़ी थी |
          वर्जनायें,   राह    को    रोके   खड़ी   थीं |
          गेह    मेरा,  बहुत  सूना    लग  रहा  था ;
          जब कि, सबके द्वार पर लक्ष्मी खड़ी थीं ||


लोग  आतिशबाजियों में  जब मगन थे,
तब स्वयं  मैं,
ढेर   इक  ,   बारूद  का   होता   रहा  हूँ ||  
                                *   

2 टिप्‍पणियां:

  1. पञ्च दिवसीय दीपोत्सव पर आप को हार्दिक शुभकामनाएं ! ईश्वर आपको और आपके कुटुंब को संपन्न व स्वस्थ रखें !
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    "आइये प्रदुषण मुक्त दिवाली मनाएं, पटाखे ना चलायें"

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  2. प्रिय अमित जी, दीपावली पर आप के
    एवं आप के परिवार की सुख समृद्धि हेतु
    असंख्य मंगलकामनाएं |
    -अरुण मिश्र.

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