गुरुवार, 27 अक्टूबर 2011

श्री लक्ष्मी-गणेश जी की आरती.......




















आरति श्री लक्ष्मी-गणेश की .......

आरति   श्री  लक्ष्मी-गणेश   की |
धन-वर्षणि की,शमन-क्लेश की ||
             
             दीपावलि     में     संग     विराजें |
             कमलासन - मूषक     पर    राजें |
             शुभ  अरु  लाभ,   बाजने    बाजें |
           
ऋद्धि-सिद्धि-दायक -  अशेष  की || 

    
             मुक्त - हस्त    माँ,   द्रव्य    लुटावें |
             एकदन्त ,    दुःख     दूर    भगावें |  
             सुर-नर-मुनि सब जेहि जस  गावें |



बंदउं,  सोइ  महिमा विशेष  की ||
                                 * 

                                                                       -अरुण मिश्र  



टिप्पणी :
                   कल दीवाली-पूजन के समय मन में यह विचार आया कि,  इस अवसर पर  जब 
लक्ष्मी-गणेश की साथ-साथ पूजा होती है तो, एक संयुक्त आरती भी होनी चाहिए | पर, घर में 
उपलब्ध  आरती सग्रहों में  ऐसी  कोई  संयुक्त आरती  नहीं  मिली | गणेश  जी  की  जहाँ  कई 
आरती मिली, वहीँ लक्ष्मी जी की  केवल एक आरती  ही मिल पाई | ऐसा शायद सरस्वती-
पुत्रों के लक्ष्मी मैय्या के प्रति  सहज  पौराणिक अरुचि के कारण हो, जो  अनावश्यक  ही,  
"लक्ष्मी समाविशतु गच्छतु वा यथेष्टम......"  का दुराग्रह पाले रहते हैं और इसी कारण प्रायः 
 उन की विशेष कृपा से वंचित रह जाते हैं |
                 अस्तु, आज प्रातः एक संयुक्त आरती लिखने का प्रयास  किया है, जिस के दो छंद, 
दीपावली-पूजन के उपयोगार्थ, समस्त भक्त-जनों को सादर-सप्रेम प्रस्तुत हैं |     -अरुण मिश्र .

 

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