सोमवार, 31 अक्टूबर 2011

छठ पर्व पर विशेष......

अस्तंगत सूर्य को एक अर्घ्य मेरा भी......

-अरुण मिश्र. 

3 टिप्‍पणियां:







  1. आदरणीय अरुण मिश्र जी
    सस्नेहाभिवादन ! सादर प्रणाम !!

    अस्तंगत सूर्य को एक अर्घ्य आपके स्वर में सुन कर मन प्रसन्न हो गया …
    आभार !

    बधाई और मंगलकामनाओं सहित…
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  2. आज आपको मेल भेजी है , उसे भी देखिएगा सरजी !!

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  3. प्रिय राजेंद्र जी,
    स्नेहाभिवादन|
    समस्या पूर्ति मंच पर आपके अत्यंत मनोहारी हरिगीतिका छंद देखे| सभी छंद सुन्दर हैं| छंद परम्परा को जीवित रखने के आप के प्रयास के लिए साधुवाद| कथ्य और शिल्प दोनों ही दृष्टि से यह दो छंद मुझे बहुत अच्छे लगे|शुभकामनायें |
    -अरुण मिश्र.

    1."इक पल लगे मन शांत ; सागर में कभी हलचल लगे!
    प्रत्यक्ष हो कोई प्रलोभन किंतु मन अविचल लगे !
    प्रिय के सिवा सब के लिए मन-द्वार पर 'सांकल' लगे !
    प्रतिरूप प्रिय परमातमा का , प्रेम में प्रति-पल लगे !"

    2."बणग्यो अमी ; विष…प्रीत कारण, प्रीत मेड़तणी करी !
    प्रहलाद-बळ हरि आप ; नैड़ी आवती मिरतू डरी !
    हरि-प्रीत सूं पत लाज द्रोपत री झरी नीं , नीं क्षरी !
    राजिंद री अरदास सायब ! प्रीत थे करज्यो 'खरी' !"

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