गुरुवार, 14 दिसंबर 2023

आह को चाहिए इक उम्र असर होने तक.../ शायर : मिर्ज़ा ग़ालिब / गायन : शैली कपूर

 https://youtu.be/VxCDrc2Qd4g?si=xmCn0bBa5RFV2zwB

आह को चाहिए इक उम्र असर होने तक
कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होनेतक
दाम-ए-हर-मौज में है हल्क़ा-ए-सद-काम-ए-नहंग
देखें क्या गुज़रे है क़तरे पे गुहर होनेतक
आशिक़ी सब्र-तलब और तमन्ना बेताब
दिल का क्या रंग करूँ ख़ून-ए-जिगर होनेतक
ता-क़यामत शब-ए-फ़ुर्क़त में गुज़र जाएगी उम्र
सात दिन हम पे भी भारी हैं सहर होनेतक
हम ने माना कि तग़ाफ़ुल करोगे लेकिन
ख़ाक हो जाएँगे हम तुम को ख़बर होने तक
परतव-ए-ख़ुर से है शबनम को फ़ना की ता'लीम
मैं भी हूँ एक इनायत की नज़र होने तक
यक नज़र बेश नहीं फ़ुर्सत-ए-हस्ती ग़ाफ़िल
गर्मी-ए-बज़्म है इक रक़्स-ए-शरर होनेतक
ग़म-ए-हस्ती का 'असद' किस से हो जुज़ मर्ग इलाज
शम्अ हर रंग में जलती है सहर होनेतक

ज़ुल्फ़ के सर होने तक  - जीतना, सुलझना, विजय
तग़ाफ़ुल न करोगे - अनदेखा करना,लापरवाही
गर्मी-ए-बज़्म - महफ़िल की गर्मी 
रक़्स-ए-शरर -  नृत्य चिंगारी  
ग़म-ए-हस्ती -  जीवन के दुख 
जुज़ - के सिवा
मर्ग - मौत

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