शुक्रवार, 19 जनवरी 2024

तस्कीं को हम न रोएँ जो ज़ौक़-ए-नज़र मिले.../ 'ग़ालिब' / गायन : फ़ारिहा परवेज़

 https://youtu.be/xnUvKWZ7kKo

तस्कीं को हम न रोएँ जो ज़ौक़-ए-नज़र मिले 
हूरान-ए-ख़ुल्द में तिरी सूरत मगर मिले 

अपनी गली में मुझ को न कर दफ़्न बाद-ए-क़त्ल 
मेरे पते से ख़ल्क़ को क्यूँ तेरा घर मिले 

साक़ी-गरी की शर्म करो आज वर्ना हम 
हर शब पिया ही करते हैं मय जिस क़दर मिले 

तुझ से तो कुछ कलाम नहीं लेकिन ऐ नदीम 
मेरा सलाम कहियो अगर नामा-बर मिले 

तुम को भी हम दिखाएँ कि मजनूँ ने क्या किया 
फ़ुर्सत कशाकश-ए-ग़म-ए-पिन्हाँ से गर मिले 

लाज़िम नहीं कि ख़िज़्र की हम पैरवी करें 
जाना कि इक बुज़ुर्ग हमें हम-सफ़र मिले 

ऐ साकिनान-ए-कूचा-ए-दिलदार देखना 
तुम को कहीं जो 'ग़ालिब'-ए-आशुफ़्ता-सर मिले

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