शनिवार, 6 जनवरी 2024

पार्वतीवल्लभाष्टकम् .../ श्रीमच्छङ्करयोगीन्द्र विरचितं / स्वर : माधवी मधुकर झा

 https://youtu.be/ehd2G7x3EwU?si=gY_2EOXqXC9igXLF

नमो भूतनाथं नमो देवदेवं
नमः कालकालं नमो दिव्यतेजम् ।
नमः कामभस्मं नमश्शान्तशीलं
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ १ ॥

अर्थ:- सभी प्राणियों के स्वामी शिव को नमस्कार है, देवो के देव महादेव को नमन नमस्कार है, कालो के काल महाकाल को नमस्कार है, दिव्य तेज को नमस्कार है, कामदेव को भस्म करने वाले को नमस्कार है, शांतशील स्वरूप शिव को नमस्कार है, पार्वती के वल्लभ अर्थात प्रिय नीलकंठ को नमस्कार है। 

सदा तीर्थसिद्धं सदा भक्तरक्षं
सदा शैवपूज्यं सदा शुभ्रभस्मम् ।
सदा ध्यानयुक्तं सदा ज्ञानतल्पंकत्र
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ २ ॥

अर्थ:- सदैव तीर्थो में सिद्धि प्रदान करने वाले, सदैव भक्तो की रक्षा करने वाले, सदैव शिव भक्तो द्वारा पूज्य, सदैव श्वेत भस्मो से लिपटे हुए, सदैव ध्यान युक्त रहने वाले, सदैव ज्ञान शैया पर शयन करने वाले नीलकंठ पार्वती के वल्लभ को नमस्कार है। 

श्मशाने शयानं महास्थानवासं
शरीरं गजानं सदा चर्मवेष्टम् ।
पिशाचं निशोचं पशूनां प्रतिष्ठं
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ ३ ॥

अर्थ:- श्मशान में शयन करने वाले, महास्थान अर्थात कैलाश में राज करने वाले, शरीर में सदैव गज चर्म धारण करने वाले, पिशाच, भूत-प्रेत, पशुओ आदि के स्वामी नीलकंठ पार्वती के वल्लभ को नमस्कार है। 

फणीनाग कण्ठे भुजङ्गाद्यनेकं
गले रुण्डमालं महावीर शूरम् ।
कटिं व्याघ्रचर्मं चिताभस्मलेपं
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ ४ ॥

अर्थ:- कंठ में अनेको विषधर नाग धारण करने वाले, गले में मुंड माला धारण करने वाले महावीर पराक्रमी कटि-प्रदेश में व्याघ्र चर्म धारण करने वाले, शरीर में चिता भस्म लगाने वाले नीलकंठ पार्वती के वल्लभ को नमस्कार है

शिरश्शुद्धगङ्गा शिवा वामभागं
बृहद्दिव्यकेशं सदा मां त्रिनेत्रम् ।
फणी नागकर्णं सदा भालचन्द्रं
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ ५ ॥

अर्थ:- जिनके मस्तक पर गंगा है तथा वामभाग पर शिव अर्थात पार्वती विराजती है, जिनके केश बड़ी बड़ी जटाए है, जिनके तीन नेत्र है कानो को विषधर नाग सुशोभित करते है मस्तक पर सदैव चंद्रमा विराजमान है ऐसे नीलकंठ पार्वती के वल्लभ को नमस्कार है। 

करे शूलधारं महाकष्टनाशं
सुरेशं वरेशं महेशं जनेशम् ।
धनेशस्तुतेशं ध्वजेशं गिरीशं
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ ६ ॥

अर्थ:- हाथो में त्रिशूल धारण करने वाले, भक्तो के कष्टों को हरण करने वाले, देवताओ में श्रेष्ट वर प्रदान करने वाले, महेश, मनुष्यों के स्वामी, धन के स्वामी, ध्वजाओ के स्वामी, पर्वतों के स्वामी नीलकंठ पार्वती के वल्लभ को नमस्कार है। 

उदानं सुदासं सुकैलासवासं
धरा निर्धरं संस्थितं ह्यादिदेवम् ।
अजा हेमकल्पद्रुमं कल्पसेव्यं
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ ७ ॥

अर्थ:- अपने भक्तो के जो दास है, कैलाश में वास करते है, जिनके कारण ये ब्रह्मांड स्थित है, आदिदेव है जो स्वयंभू दिव्य सहस्त्र वर्षो तक पूज्य है उन नीलकंठ पार्वती के वल्लभ को नमस्कार है। 

मुनीनां वरेण्यं गुणं रूपवर्णं
द्विजानं पठन्तं शिवं वेदशास्त्रम् ।
अहो दीनवत्सं कृपालुं शिवं हि
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ ८ ॥

अर्थ:- मुनियों के लिए जो वरेण्य है, जिनके रूपों, गुणों वर्णों आदि की स्तुति द्विजो द्वारा की जाती है तथा वेदों में कहे गये है दीनदयाल कृपालु, महेश नीलकंठ पार्वती वल्लभ को मै नमस्कार करता हूँ।  

सदा भावनाथं सदा सेव्यमानं
सदा भक्तिदेवं सदा पूज्यमानम् ।
मया तीर्थवासं सदा सेव्यमेकं
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ ९ ॥

अर्थ:- सभी प्राणियों के स्वामी, सदैव पूजनीय, पूज्यम मेरे द्वारा सभी देवतओं में पूज्य नीलकंठ पार्वती के वल्लभ को नमस्कार है। 

इति श्रीमच्छङ्करयोगीन्द्र विरचितं पार्वतीवल्लभाष्टकम् ॥

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