सोमवार, 30 दिसंबर 2024

एशचे जमाई दिगोम्बोर.../बाङ्ला बाउल गीत / गायन : पार्वती बाउल

https://youtu.be/Fuhyx9iCUJI  


A take on an old bengali traditional baul song 
that sings about Shiva's wedding, his "strange" 
ways and love for ganjar...

1. Ashche Jamai Digombor
X Buri tui ganjar jogar kor II
2. Oi shona jay bhuter kulkuli
Ghor duar tor bhangbe ebar urabe dhuli l
X Na hoy ganjar kolke bhanger jhuli
Tui Jamaier hate tule dhor II
3. Mota shota jamai jemon
Rupe Giribalao temon .
X Anuchor Nandi Bhringi dui ganjakhor
Umar Shomnondi Keshori Bahon II
4. Shuni shoshane moshane thake
Chita bhoshsho gaye makhe
X Hey ma , kemon kore emon bore
Korbe tumi ghor II

GOOGLE SCRIPT CONVERSION 

1. एशचे जमाई दिगोम्बोर
एक्स बुरी तुई गांजर जोगर कोर 
2. ओय शोना जय भूतेर कुल्कुली
घोर दुआर तोर भंगबे एबार उरबे धूलि एल
एक्स ना होय गांजर कोलके भंगेर झूली
तुई जमाइर हेट तुले ढोर 
3. मोटा शोता जमाई जेमन
रूपे गिरिबालाओ टेमन।
एक्स अनुचोर नंदी भृंगी दुइ गंजखोर
उमर शोमनोंदी केशोरी बाहोन 
4. शुनि शोषाणे मोशने थके
चिता भोषशो गये माखे
एक्स अरे माँ, केमोन कोरे एमोन बोर
कोरबे तुमी घोर 

...and translation in english

Composed by Shri Shoshnko Goshai

1.Oh old woman , your naked son in law is coming soon ,
Now you arrange enough ganja for him .
2. Now we can hear the sound of his ghost army
Your house and all establishment will collapse to dust .
To keep him calm , it is best that you arrange a gift bag with Bhang and a
ganja chillum.
3. You son in law is fat and well fade
You daughter too so good looking
Nandi and Bhringi the servants of Shiva both ganja addicts
And Somnandi the lion vehicle of Uma .
I hear that your son in law lives in the burning grounds
He smears his body with the ashes from the funeral pyre
Oh mother ! (Uma) how will make your home with such a bridegroom!

रविवार, 29 दिसंबर 2024

हुकुस बुकुस : कश्मीर की परंपरा से

https://youtube.com/shorts/Sgo1d0df

हुकुस बुकुस: कश्मीर की परंपरा से

हुकुस बुकुस कश्मीर के पंडितों के सबसे लोकप्रिय 
गीतों में से एक है, जो इस्लाम के वर्चस्व के बाद 
अपनी मातृभूमि से विस्थापित हो गए हैं। 
इस कविता का संदेश कश्मीर की आध्यात्मिक 
परंपरा में निहित है। कुछ लोगों का कहना है कि 
इसे कश्मीर शैव धर्म की अंतिम महान रहस्यवादी 
और कवयित्री लल्लेश्वरी (जिसे लाल देद, 1320 - 
1392) के नाम से भी जाना जाता है) ने रचा था। 
बाद के वर्षों में यह कविता बच्चों के लिए एक गीत 
बन गई और कश्मीर के दर्शन का सार बच्चों और 
वयस्कों तक पहुँचाने के लिए एक काव्यात्मक 
माध्यम के रूप में काम किया, हालाँकि बहुत कम 
लोग इसे समझ पाए।

ऐसा कहा जाता है कि इस कविता में शब्दों की 
व्यवस्था और लय से उत्पन्न स्वर सभी समय के 
शिशुओं और बच्चों पर शांतिदायक प्रभाव डालते 
हैं।

यहां कश्मीर की भाषा में कविता के शब्द और अनुवाद में मूल अर्थ दिए गए हैं ।

हुकुस बुकुस तेल्लि वान्न चे कुस
ओनम बट्टा लोडम देग
शाल किच किच वांगानो
ब्राह्मी चरस पुआने छोकुम्
ब्रह्मिश बटन्ये तेखिस त्याखा।
इटकेने ने इटकेने
त्से कुस बे कुस तेली वान सु कुस
मोह बटुक लोगुम देग
श्वास खिच खिच वांग-मायम
भ्रुमन दरस पोयुन चोकुम
तेकिस ताक्य बने त्युक।

त्से कुस बे कुस तेली वान सु कुस = आप कौन हैं 
और मैं कौन हूँ, तो हमें बताइए कि वह कौन है जो 
आपके और मेरे दोनों में व्याप्त है

मोह बटुक लोगुम देग = प्रत्येक दिन मैं अपनी 
इंद्रियों/शरीर को सांसारिक आसक्ति और भौतिक 
प्रेम का भोजन खिलाता हूँ (मोह = आसक्ति)

श्वास खिच खिच वांग-मायम = जब मैं जो सांस 
लेता हूं वह पूर्ण शुद्धि के बिंदु पर पहुंच जाती है 
(श्वास = सांस)

भ्रुमन दरस पोयुन चोकुम = ऐसा लगता है जैसे 
मेरा मन दिव्य प्रेम के जल में स्नान कर रहा है 
(भ्रुमन = मानव मस्तिष्क में तंत्रिका केंद्र, 
पोयुन = पानी)

तेकीस तक्या बने त्युक = तब मुझे पता चलता है 
कि मैं उस चंदन की लकड़ी की तरह हूँ जिसे दिव्य 
सुगंध के लिए चिपकाया जाता है जो सार्वभौमिक 
दिव्यता का प्रतीक है। मुझे एहसास होता है कि मैं 
वास्तव में दिव्य हूँ (त्युक = माथे पर लगाया जाने 
वाला टीका)

स्रोत: http://www.koausa.org/music/shokachaniya/lyrics.html

सोमवार, 23 दिसंबर 2024

दर्द से मेरे है तुझ को बे-क़रारी हाय हाय.../ शायर : मिर्ज़ा ग़ालिब / गायन : युम्ना अजिन

https://youtu.be/_xcP8pjn0Qc  


दर्द से मेरे है तुझ को बे-क़रारी हाय हाय
क्या हुई ज़ालिम तिरी ग़फलत-शि`आरी हाय हाय

तेरे दिल में गर न था आशोब-ए-ग़म का हौसला
तू ने फिर क्यूं की थी मेरी ग़म-गुसारी हाय हाय

क्यूं मिरी ग़म-ख़्वारगी का तुझ को आया था ख़याल
दुश्मनी अपनी थी मेरी दोस्त-दारी हाय हाय

उम्र भर का तू ने पैमान-ए-वफ़ा बांधा तो क्या
उम्र को भी तो नहीं है पाइदारी हाय हाय

ज़हर लगती है मुझे आब-ओ-हवा-ए-ज़िन्दगी
यानी तुझ से थी उसे ना-साज़गारी हाय हाय

गुल-फ़िशानीहा-ए-नाज़-ए-जलवा को क्या हो गया
ख़ाक पर होती है तेरी लालह-कारी हाय हाय

शर्म-ए-रुसवाई से जा छुपना नक़ाब-ए-ख़ाक में
ख़तम है उल्फ़त की तुझ पर पर्दह-दारी हाय हाय

ख़ाक में नामूस-ए-पैमाना-ए-मुहब्बत मिल गई
उठ गई दुनिया से राह-ओ-रस्म-ए-यारी हाय हाय

हाथ ही तेग़-आज़्मा का काम से जाता रहा
दिल पह इक लगने न पाया ज़ख़्म-ए-कारी हाय हाय

किस तरह काटे कोई शबहा-ए-तार-ए-बर्श-काल
है नज़र ख़ू-कर्दह-ए-अख़्तर-शुमारी हाय हाय

गोश महजूर-ए-पयाम-ओ-चश्म महरूम-ए-जमाल
एक दिल तिस पर यह ना-उम्मीदवारी हाय हाय

इश्क़ ने पकड़ा न था ग़ालिब अभी वहशत का रंग
रह गया था दिल में जो कुछ ज़ौक़-ए-ख़्वारी हाय हाय

देखी दिल्ली की एक लड़की.../ किशोर कुमार

One of the best funny song by legendary  Kishore Kumar.

I bet lot many have not heard or seen this song.....in the portion of kishore in father's role,  you can hear the first Indian rap....the multi talented genius Kishore Kumar..❤️

रविवार, 22 दिसंबर 2024

या रब मेरे हुनर को तू ऐसा कमाल दे.../ शायर : अह्या भोजपुरी / गायन : खनक जोशी

https://youtu.be/6r8iW9MYXrc

या रब मेरे हुनर को तू ऐसा कमाल दे
जो दुश्मनों का ख़ौफ भी दिल से निकाल दे

मेरा हर एक 'शेर इबादत गुज़ार हो
जिसकी कलन्दरी की ज़माना मिसाल दे

डर से किसी भी 'शेर की गर्दन झुके नहीं
लफ़्ज़ों के हर्फ़-हर्फ़ को रिज़्क-ए-हलाल दे

लफ़्ज़ों की भी बुनत हो रवानी के साथ-साथ 
उससे बुलन्द 'शेर दे जिसका ख़याल दे

ज़ौक-ए-सुख़न दिया है तो इतना करम  भी कर
ज़ोर-ए-क़लम भी तू  मेरी झोली में डाल दे

अह्या सुकूं-परस्त है लेकिन मेरे ख़ुदा
जितना जलाल चाहिए उतना जलाल दे

गुरुवार, 19 दिसंबर 2024

याद.../ शायर : फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ / गायन : मीशा सफ़ी

https://youtu.be/tYB-6i_q4sU  


दश्त-ए-तन्हाई में ऐ जान-ए-जहाँ लर्ज़ां हैं
तेरी आवाज़ के साए तिरे होंटों के सराब
दश्त-ए-तन्हाई में दूरी के ख़स ओ ख़ाक तले
खिल रहे हैं तिरे पहलू के समन और गुलाब

उठ रही है कहीं क़ुर्बत से तिरी साँस की आँच
अपनी ख़ुशबू में सुलगती हुई मद्धम मद्धम
दूर उफ़ुक़ पार चमकती हुई क़तरा क़तरा
गिर रही है तिरी दिलदार नज़र की शबनम

इस क़दर प्यार से ऐ जान-ए-जहाँ रक्खा है
दिल के रुख़्सार पे इस वक़्त तिरी याद ने हात
यूँ गुमाँ होता है गरचे है अभी सुब्ह-ए-फ़िराक़
ढल गया हिज्र का दिन आ भी गई वस्ल की रात

रविवार, 15 दिसंबर 2024

आज्यो म्हारा देस.../ मीराबाई / स्वर : विदुषी अश्विनी भिड़े

https://youtu.be/vpRgMYh6v8A  


बतियाँ दौरावत’ के सभी श्रोताओं का मीराबाई के साथ चल रहे हमारे सफर में सादर स्वागत ।
आज का मीराबाई का पद मेरे दिल के बहुत ही करीब है, क्यूँ कि इसकी स्वररचना मेरी अत्यंत पसंदीदा, गुरुसमान स्व. शोभा गुर्टूजी की है, और इसको मैंने स्वयं शोभाताई से ही सीखा है।

मीराबाई को जब उनके मानसदेव गिरिधर गोपाल मिल जाते हैं, तब उनके पदों में एक समर्पणभाव छलकता है। परंतु जब मीराबाई हरिमिलन से वंचित रहतीं हैं, चाहे यह विरह कुछ क्षणों का ही क्यूं न हो- तब वे जलबिन मछली की तरह तड़पतीरहती हैं। विरह से व्याकुल हो उठतीं हैं। जैसे यह विरह जन्मजन्मांतर का हो ! और कहती है,
लागी सोही जाणे,
कठण लगण दी पीर

आज का मीरा भजन इसी बिरह की अगन, पीडा को चित्रित करता है।
सांवरिया, आज्यो म्हारा देस,
थारी सांवरी सुरतवालो भेस,
आज्यो म्हारा देस ॥

पद की स्वररचना का आधार है राग अहिरभैरवी- या अहिरी तोडी का।
पद के शुरुआत की 'सांवरियां…’ की पुकार उस कान्हा को वहां सुनाई देगी, जहाँ भी वो होगा। इस पुकार में मीरा की सारी तड़प उजागर होती है।

आइए, सुनते हैं, मीराबाई की पुकार - 'साँवरिया, आज्यो म्हारा देस'.

बुधवार, 11 दिसंबर 2024

आजु नाथ एक व्रत महा सुख लागल हे.../ महाकवि विद्यापति /

https://youtu.be/PCHrnCAQALI

विद्यापति गीत

आजु नाथ एक व्रत महा सुख लागत हे 
तोहे शिव धरु नट वेष कि डमरू बजाबह हे

तोहें जे कहैछ गौरी नाचय कि हम कोना नाचब हे
आहे चारि सोच मोहि होए कोन बिधि बाँचब हे

अमिअ चुबिअ भूमि खसत बघम्बर जागत हे
होएत बघम्बर बाघ बसहा धरि खायत हे

सिरसँ ससरत साँप पुहुमि लोटायत हे
कार्तिक पोसल मजूर सेहो धरि खायत हे

जटासँ छिलकत गंग भूमि भरि पाटत हे
होएत सहस्त्र मुखी धार समेटलो न जाएत हे

मुंडमाल टुटि खसत, मसानी जागत हे
तोहें गौरी जएब पड़ाए नाच के देखत हे

*महाकवि विद्यापति जी की अनुपम रचना*
              *एक रोचक कथा*
एक बार मां पार्वती जी ने भोलेनाथ से कहा की आज आप नट के वेश धर के डमरू बजाइए जिससे मुझे परम सुख की अनुभूति होगी।तो शिव ने कहा की हे गौरी आप जो मुझे नृत्य करने कह रही हैं मुझे चार चिंता हो रही है जिससे किस तरह से बचा जायेगा।

पहली चिंता अमृत के जमीन पर टपकने से बाघंबर जो मैंने पहन रखा है वो जीवित होकर बाघ बन जायेगा और बसहा को खा जायेगा।

दूसरी चिंता सिर पर से सर्प गिर जायेंगे और जमीन पर फैल जायेंगे और कार्तिक ने जो मयूर को पाला है उसे पकड़ के खा लेगा।

तीसरी चिंता मेरे जटा से गंगा छलक जायेगी और सारी जमीन पर फैल जाएगी और जिसके सैकड़ों मुख हो जायेंगे जिसे समेटना मुश्किल हो जायेगा।

चौथी चिंता ये हो रही है की मैं मुंड का माला पहना हूं 
वो टूट कर गिर जाएगा और सारे जग जायेंगे और आप भाग जाएगी डर कर तो मेरा नाच कौन देखेगा।

पर महाकवि विद्यापति कहते हैं की उन्होंने सब बाधाओं को सम्हालते हुए गौरी का मान रखा और अपना नृत्य दिखाया।

सोमवार, 9 दिसंबर 2024

जबसे मोहिं नंदनंदन दृष्टि पड्यो माई.../ मीराबाई / प्रस्तुति : विदुषी अश्विनी भिडे / गायन : शरयू दाते एवं शमिका भिडे

https://youtu.be/cQCqTDA5XM0  



जबसे मोहिं नंदनंदन दृष्टि पड्यो माई
तबसे परलोक लोक कछु ना सुहाई

मोरन की चंद्रकला, सीस मुकुट सोहे
केसरको तिलक भाल, तीन लोक मोहे

कुंडल की अलक झलक कपोलन सुहाई
‘मनोमीन सरवर तजि मकर मिलन आई...!’

नमस्ते, 'बतियां दौरावत’ के सभी सुधी श्रोताओं को आज ले चलती हूँ नंदनंदन के दर्शन कराने। भक्त सिरोमणि मीराबाई की नज़रोंसे, उन्हें जैसा दिखाई दिये, वैसे।
यूँ तो श्रीकृष्ण परमात्मा की छबि का वर्णन करनेवाले अनगिनत पद मिलते हैं, और मीराबाई भी इस छबि से मोहित रहीं। उन्होंने भी इस छबि का वर्णन करने हेतु कई पद लिखें ।आज जो पद हम सुनेंगे उसके शब्द है

जबसे मोहिं नंदनंदन दृष्टि पड्यो माई
तबसे परलोक लोक कछु ना सुहाई

गिरिधर गोपाल के मुखचंद्र से मीराबाई को तुरन्त ही लगाव हो गया। सिरपर धारण किए हुए मुकुटपर लहर रहा मोरपिच्छ, भालप्रदेशपर केसर तिलक,

मोरन की चंद्रकला, सीस मुकुट सोहे
केसरको तिलक भाल, तीन लोक मोहे

अर्धोन्मीलित नयन, उगते सूरज के वर्णवाले अधरोंपर मंद मंद मुसकान, कानों में मकराकृती कुंडल, जिनकी प्रभा कपोल - अर्थात् गालों पर छा रही है। और - यह प्रतिमा मुझे बहुतही मनभावन लगती है, कि गालों पर छा रही कुंडलप्रभा कुंडलों की दोलायमान होने की वजह से ऐसा लग रहा है मानों मन का मीन मानसरोवर को त्यागकर  कुंडलों के मकर से मिलने के लिए गालोंपर आ पहुंचा हो…।

कुंडल की अलक झलक कपोलन सुहाई
‘मनोमीन सरवर तजि मकर मिलन आई...!’

श्रीकृष्ण परमात्मा की विलोभनीय छबि का वर्णन करते समय मीरा अपनेआप को किसी भी सर्वसामान्य गोपी की भूमिका में विलीन कर देती हैं। यह भावना किसी भी गोपी की हो सकती है, मीरा की अकेली की नहीं।

“चालां वाही देस”, या “माई म्हाने सुपणां में परणी गोपाल”, या मीराबाई का सर्वज्ञात पद “मेरे तो गिरिधर गोपाल दूसरो न कोई” इन सारे पदों में जो भावना है, वह मीरा की अकेली की है, कोई अन्य सामान्य गोपी ऐसी भावना महसूस नहीं कर सकती। यह तो मीरा की प्रतिभा की उडान है। यह है श्रीकृष्ण परमात्मा से एकाकार होने पर जो आनंद प्राप्त हुआ उसका आविष्कार!

चूंकि यह भावना मीरा की अकेली की नहीं, इसलिए इसे युगलगीत की तरह प्रस्तुत किया है। इसे स्वर दिया है, मेरी दो गुणी विद्यार्थिनियों- शरयू दाते तथा शमिका भिडे ने ।

आइए, सुनते हैं, युगलगीत
“जबसे मोहिँ नंदनंदन दृष्टि पड्यो माई
तबसे परलोक लोक कछु न सुहाई।”

-अश्विनी भिडे देशपांडे 

रविवार, 1 दिसंबर 2024

लइ न गए बेइमनऊ हमका लइ न गए.../ ठुमरी / गायन : नैना देवी.

https://youtu.be/8Ei4uPGB_4Y  


नैना देवी (२७ सितम्बर १९१७ - १ नवम्बर १९९३) 
जिन्हें नैना रिपजीत सिंह के नाम से भी जाना जाता है, 
हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की भारतीय गायिका थीं, 
जो मुख्यतः अपनी ठुमरी प्रस्तुतियों के लिए जानी 
जाती थीं, हालाँकि उन्होंने दादरा और ग़ज़लें भी 
गाईं। वह ऑल इंडिया रेडियो और बाद में दूरदर्शन 
में संगीत निर्माता थीं। उन्होंने अपनी किशोरावस्था 
में गिरजा शंकर चक्रवर्ती से संगीत की शिक्षा शुरू 
की, बाद में १९५० के दशक में रामपुर-सहसवान 
घराने के उस्ताद मुश्ताक हुसैन खां और बनारस 
घराने की रसूलन बाई से इसे फिर से शुरू किया। 
कोलकाता के एक कुलीन परिवार में जन्मी, उनकी 
शादी १६ साल की उम्र में कपूरथला स्टेट के शाही 
परिवार में हुई थी।

लइ ना गये बेइमनऊ, हमका लइ ना गये
लइ ना गये दगाबजऊ  हमका लइ ना गये

चार महीना बरखा के लागे
बूँद बरसे बदरवा, हमका लइ ना गये

चार महीना जाड़ा के लागे
थर-थर काँपे बदनवा, हमका लइ ना गये