मुक्तक
- अरुण मिश्र
मोहन है , कन्हैया है , नटवर है , श्याम है।
हो कर भी परम तत्व, वह हम सब सा आम है।
वंशी है उस की, सृष्टि के नव-चेतना का स्वर ;
राधा, जगत में नेह की लीला का नाम है ।।
वंशी है उस की, सृष्टि के नव-चेतना का स्वर ;
राधा, जगत में नेह की लीला का नाम है ।।
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अपने तमाम ऐबों के संग , है वो छबीला।
है काला-कलूटा , मगर है फिर भी रंगीला।
वह 'व्यक्ति में भगवान की है कल्पना सुंदर';
यह कल्पना भी है , उसी भगवान की लीला।।
है काला-कलूटा , मगर है फिर भी रंगीला।
वह 'व्यक्ति में भगवान की है कल्पना सुंदर';
यह कल्पना भी है , उसी भगवान की लीला।।