-अरुण मिश्र
बहन, मेरी कलाई पर,
जो तुमने तार बॉधा है।
तो, इसके साथ स्मृतियों-
का, इक संसार बॉधा है।।
ये धागे सूत के कच्चे।
ये कोमल, रेशमी लच्छे।
दिलाते याद उस घर की,
रहे जिस घर के हम बच्चे।।
इसे बॉधा, तो तुमने,
फिर वही परिवार, बॉधा है।।
बड़ी हो तो, असीसें औ’
दुआयें, बॉधी हैं इसमें।
जो छोटी हो तो, मंगल-
कामनायें बॉधी हैं इसमें ।।
सहज विश्वाश बॉधा है।
परस्पर प्यार बॉधा है।।
सुरक्षित हों सदा भाई।
सदा रक्षित रहे बहना।
ये रक्षा-सूत्र है, इस देश
के, संस्कार का गहना।।
महत् इस पर्व पर, तुमने
अतुल उपहार, बॉधा है।।
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इसे बाँधा तो तुमने फिर वही परिवार बाँधा है......सुंदर और सामयिक गीत के लिए साधुवाद .
जवाब देंहटाएंइस ब्लॉग पर पधारने एवं उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए धन्यवाद, यती जी |
जवाब देंहटाएंDr. Girish Kumar Verma to me on G-MAIL
जवाब देंहटाएंआपकी रचना आपके स्वर में सुनी। अति सुन्दर........।
बड़े जतन से इसे आपने सवांरा है।
वो रचना ही नहीं संस्कारों का पिटारा है।
सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी
Thank you, Dr. Girish Verma Ji, for your kind appreciation. I need your continued support.
- Arun mishra.