फागुन रितु आई रे!
-अरुण मिश्र
आई रे! फागुन रितु आई रे!
पोर - पोर में , अंग - अंग में,
किस अनंग ने, अलख जगाई रे!
पोर - पोर में , अंग - अंग में,
किस अनंग ने, अलख जगाई रे!
फूली सरसों , फूली अरहर।
बौरे बाग , आम के मनहर।
दहके टेसू , महके महुआ।
चली फगुनहट स-र-र-र सरसर।।
नव वसन्त ने ली अँगड़ाई रे!
आई रे! फागुन रितु आई रे!
गेहूँ - जौ झूमें गदराये।
चना - मटर सब लट छितराये।
अल्हड़ फलियां बाट जोहतीं,
किस पाहुन का, सुधि बिसराये??
होली बजा रही शहनाई रे!
आई रे! फागुन रितु आई रे!
अवध - वीथिकायें, ब्रज-गलियां।
मना रहीं निसि-दिन, रंगरलियां।
राम - श्याम, दुइ भ्रमर गुंजरत,
खेलत, हॅसत, खिलावत कलियां।।
भारत भर में, धूम मचाई रे!
आई रे! फागुन रितु आई रे!
कविता / फाल्गुन पूर्णिमा, २००४
बहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंToDear,Patali-The-Village:
जवाब देंहटाएंआपका आभार एवं होली की शुभकामनायें!
-अरुण मिश्र