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ऐसी बारिश.........
-अरुण मिश्र.
ऐसी बारिश, कभी सोचा था कि, जम कर होगी ?
बूँदें बाहर , औ' घटायें मेरे भीतर होंगी ??
करती मासूम कलेजे को चाक-चाक निगाह।
वो नज़र, सिर्फ़ नज़र ही नहीं, नश्तर होगी॥
जो आबशार सा दिन-रात झरा करती है।
संगदिल कैसे पठारों की, चश्मे-तर होगी ??
पीर पैदा हुई, नाज़ों पली, परवान चढ़ी।
इश्क़ के घर की बड़ी लाड़ली दुख्तर होगी॥
खुले दिलों में, खुले दिल से मैं घुल जाता था।
कैसे कुछ तंग दिलों में, मेरी बसर होगी ??
चाँदनी रातें, जो लगती थीं , गुलों का बिस्तर।
वे ही रातें, कभी सोचा था कि खंज़र होंगी ??
आइनाख़ाना-ए-दुनिया में, देख लीं जो 'अरुन'।
सूरतें ऐसी, न जन्नत में मयस्सर होंगी ??
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