ग़ज़ल
*हिंदी दिवस पर विशेष *
बीसियों हिंदी-दिवस आते रहे जाते रहे.........
-अरुण मिश्र
इस तरह हम इश्क़ दोनों ही से फरमाते रहे ।
एक की खाते रहे और दूजे की गाते रहे ।।
सिर्फ़ दो सौ साल में, नस कौन सी जाने दबी ।
बाँध टाई ख़ुश हुए, गिट-पिट पे इतराते रहे ।।
इससे बढ़ कर और क्या ज़ेह्नी ग़ुलामी का सबूत ।
हिंदी को, हिंदी में लिखने में भी, शरमाते रहे ।।
हर तरक्क़ी का सबब है, अपनी भाषा का उरुज ।
मंत्र से 'हरिचंद' के, हम मन को बहलाते रहे ।।
बाद आज़ादी 'अरुन ', हिंदी वहीं की है वहीं ।
बीसियों हिंदी-दिवस, आते रहे, जाते रहे ।।
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*हिंदी दिवस पर विशेष *
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बीसियों हिंदी-दिवस आते रहे जाते रहे.........
-अरुण मिश्र
इस तरह हम इश्क़ दोनों ही से फरमाते रहे ।
एक की खाते रहे और दूजे की गाते रहे ।।
सिर्फ़ दो सौ साल में, नस कौन सी जाने दबी ।
बाँध टाई ख़ुश हुए, गिट-पिट पे इतराते रहे ।।
इससे बढ़ कर और क्या ज़ेह्नी ग़ुलामी का सबूत ।
हिंदी को, हिंदी में लिखने में भी, शरमाते रहे ।।
हर तरक्क़ी का सबब है, अपनी भाषा का उरुज ।
मंत्र से 'हरिचंद' के, हम मन को बहलाते रहे ।।
बाद आज़ादी 'अरुन ', हिंदी वहीं की है वहीं ।
बीसियों हिंदी-दिवस, आते रहे, जाते रहे ।।
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