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रविवार, 16 सितंबर 2012

ये घर के सामने जो गुलमुहर है........


ये घर के सामने जो गुलमुहर है........ 



















ग़ज़ल 

ये घर के सामने जो गुलमुहर है........

-अरुण मिश्र.

ये   घर  के   सामने   जो   गुलमुहर  है।
मेरे    शे'रो-सुख़न    का   हमसफ़र   है॥

है सुब्हो-शाम हर सुख-दुख में शामिल।     
क़रीबी    है,   बहुत    ही    मो'तबर    है॥

हैं     बालो-पर     ख़याल-आराइयों   के।
हरी    जो     पत्तियां     ओढ़े   शजर   है॥

मैं   ख़ुश  होता  तो   ये  भी   झूमता  है।
इसे   दिल   की   हमारे    हर   ख़बर  है॥

टंके    हैं    सुर्ख़   फूलों   के   जो  गुच्छे।
भरा    उनमें     मेरा    ख़ूने-जिगर    है॥

है    परवाज़े-सुख़न   में    जोश   भरता।
ये   मेरी   ख़ाक    में    भरता  शरर   है॥

'अरुन'  है साथ  जब तक गुलमुहर का।
नहीं   तनहाइयों   का     कोई    डर   है॥

                                   *

शुक्रवार, 14 सितंबर 2012

बीसियों हिंदी-दिवस आते रहे जाते रहे.........

ग़ज़ल 

*हिंदी दिवस पर विशेष *
संबंधित ब्लाग से साभार 













बीसियों हिंदी-दिवस आते रहे जाते रहे......... 

-अरुण मिश्र 

इस  तरह  हम  इश्क़  दोनों  ही  से  फरमाते  रहे ।
एक   की   खाते   रहे  और   दूजे   की   गाते  रहे ।।

सिर्फ़  दो सौ  साल में,  नस  कौन सी जाने  दबी ।
बाँध  टाई  ख़ुश  हुए,  गिट-पिट  पे  इतराते  रहे ।।

इससे बढ़ कर और क्या ज़ेह्नी ग़ुलामी का  सबूत ।
हिंदी को,  हिंदी में  लिखने में  भी,  शरमाते  रहे ।।

हर तरक्क़ी का सबब है,  अपनी भाषा का उरुज ।
मंत्र  से  'हरिचंद'  के,  हम  मन को बहलाते  रहे ।।

बाद  आज़ादी  'अरुन ',  हिंदी  वहीं  की   है  वहीं ।
बीसियों    हिंदी-दिवस,   आते   रहे,   जाते   रहे ।।
                                             *  


शुक्रवार, 31 अगस्त 2012

वो जो इल्मो-फ़न के थे आशना........


अभी भी बचे हैं दरख़्त कुछ .....


ग़ज़ल  

वो जो इल्मो-फ़न के थे आशना........
  
-अरुण मिश्र

वो जो इल्मो-फ़न के थे आशना,  कहीं दीखते वो बशर नहीं।
जो मिरे कलाम में था असर,  मुझे  अब लगे  वो असर नहीं॥

सभी  ग़ुल  हैं सूखते शाख़  पर, सभी हीरे  लिपटे हैं  धूल में।
न वो क़द्रदां,  न वे पारखी,  हैं वो पहले से  अहले-नज़र नहीं॥

हैं  बदलते  वक़्त के  संग-संग,  सभी  रूप-रंग   बदल  गये।
है ज़माना पहुँचा  कहाँ तलक, तुझे  इसकी  कोई ख़बर नहीं॥

अभी भी  बचे  हैं  दरख़्त  कुछ,   मेरे  शह्र में , मिरे  लान में।

पर थीं जिसपे  कूकती कोयलें,  कहीं दूर तक वो  शज़र नहीं॥

तेरे नग़मों में अभी ताजगी,  तेरी  ऑखों में  अभी  ख़्वाब  हैं।
तेरी जुस्तजू है  अथाह की,   कहीं  थक के  जाना  ठहर नहीं॥
                                                      *
....मेरे शह्र  में, मेरे लान में।





रविवार, 19 अगस्त 2012

मेरे अक़ीदे ने तुझको किया है ईद का चॉद......

आपको एवं आप के परिवार को ईद की शुभकामनायें !





















ईद पर विशेष 

मेरे अक़ीदे ने तुझको किया है ईद का चॉद......

-अरुण मिश्र.


है  लबे&बाम  तेरे  हुस्न की  ताईद का  चाँद।
हो मुबारक सभी को आज बज़्मे&ईद का चाँद।।    


उफ़क पे  उभरी  हुई  यूँ  तो  इक  लकीर  है  बस।
मेरे  अक़ीदे   ने   तुझको  किया  है ईद का  चॉद॥

मुझे   यक़ीन   है   ख़ुशियों   से    भरेगा   दामन।
मैंने  बरसों  से   इसे  जाना  है  उम्मीद का  चॉद॥

गले  मिलो  सभी  आपस  में  भूल  कर  नफ़रत।
झलक  रहा है  फ़लक पे  इसी  ताकीद  का  चॉद॥

सभी  का   एक  ही  मालिक  है  जान  लो  लोगों।
'अरुन' के  वास्ते  चमका  है  ये  तौहीद का  चॉद॥
                                            *