ये घर के सामने जो गुलमुहर है........
-अरुण मिश्र.
ये घर के सामने जो गुलमुहर है।
मेरे शे'रो-सुख़न का हमसफ़र है॥
है सुब्हो-शाम हर सुख-दुख में शामिल।
क़रीबी है, बहुत ही मो'तबर है॥
क़रीबी है, बहुत ही मो'तबर है॥
हैं बालो-पर ख़याल-आराइयों के।
हरी जो पत्तियां ओढ़े शजर है॥
मैं ख़ुश होता तो ये भी झूमता है।
इसे दिल की हमारे हर ख़बर है॥
टंके हैं सुर्ख़ फूलों के जो गुच्छे।
भरा उनमें मेरा ख़ूने-जिगर है॥
है परवाज़े-सुख़न में जोश भरता।
ये मेरी ख़ाक में भरता शरर है॥
'अरुन' है साथ जब तक गुलमुहर का।
'अरुन' है साथ जब तक गुलमुहर का।
नहीं तनहाइयों का कोई डर है॥
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