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प्रिय तरु एवं अविनाश के बरिच्छा / सगाई / गोद-भराई के
शुभ अवसर (१८ अक्टूबर ,२०१५ ) पर विशेष
-अरुण मिश्र
पहिरावैं मुद्रिका परस्पर.......
चौपाई
विक्रम सम्वत बीस-बहत्तर। सानुकूल तिथि, वार, नछत्तर।।
सारदीय नवरात्रि, सुहावन। सुक्ल-पंचमी तिथि, अति पावन।।
आंग्ल तिथी अट्ठारह सुभकर। दुइ हजार पन्द्रह, अक्तूबर।।
मध्य-दिवस, रवि वासर रुचिकर। बरसहिं आतप-कृपा दिवाकर।।
तीर गोमती के अति पावन। नगर लखनऊ, बसा सुहावन।।
लछिमन लीला-भूमि मनोहर। तेहि नगरी एक थल पर सुन्दर।।
विधि कै अस मंगल विधान भय। दुइ परिवार भये कृत-निश्चय।।
करहिं सगाई कन्या औ’ वर। पहिरावैं मुद्रिका परस्पर।।
सोरठा
सबके हृदय उछाह, सबके मन उपज्यो सुमति।
तरु-अविनाश बिवाह, होहि अवसि अरु शीघ्र अति।।
दोहा
वर कै होय बरीच्छा, सुभ-साइत अनुसार।
गोद भराई वधू कै करहि, अपर परिवार।।
होहि सदा यहि जुगल पर, प्रभु की कृपा अपार।
मंगलमय सम्बन्ध मा, जुरैं दुहू परिवार।।
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