बुधवार, 7 अक्तूबर 2015

सन्नाटा और कोलाहल

 सन्नाटा और कोलाहल

 - अरुण मिश्र



सन्नाटा होता है,
आयोजन से पहले।
और बाद में
फिर होता, विराट सन्नाटा।
कोलाहल तो बस,
आयोजन तक है सीमित।।

 
यही प्रकृति है।
यही नियति है।
यही सृष्टि है।
सारे जग-प्रपंच के पीछे,
विधि का शायद यही प्रयोजन।
सन्नाटों के अन्तराल में,
कुछ कोलाहल का आयोजन।।


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