कैसी होरी मचाई : होली भजन : ब्रह्मानन्द जी राग काफ़ी : मैथिली ठाकुर
कैसी होरी मचाई, कन्हाई अचरज लख्यो ना जाई, कैसी होरी मचाई... एक समय श्री कृष्णा प्रभो को, होरी खेलें मन आई एक से होरी मचे नहीं कबहू, याते करूँ बहुताई यही प्रभु ने ठहराई, कैसी होरी मचाई... पांच भूत की धातु मिलाकर, अण्ड पिचकारी बताई चौदह भुवन रंग भीतर भर के, नाना रूप धराई प्रकट भये कृष्ण कन्हाई, कैसी होरी मचाई... पांच विषय की गुलाल बना के, बीच ब्रह्माण्ड उड़ाई जिन जिन नैन गुलाल पड़ी वह, सुध बुध सब बिसराई नहीं सूझत अपनाई, कैसी होरी मचाई... वेद अनेक अञ्जन की सलाका, जिसने नैन में पायी ब्रह्मानंद तिस्का तम नास्यो, सूझ पड़ी अपनाई औरि कछु बनी न बनाई, कैसी होरी मचाई...
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