https://youtu.be/T-k9I9Lstsw
"अग्रत: चतुरो वेदा: पृष्ठत: सशरं धनु: ।
इदं ब्राह्मं इदं क्षात्रं शापादपि शरादपि ।।"
इदं ब्राह्मं इदं क्षात्रं शापादपि शरादपि ।।"
अर्थ : चार वेद मौखिक हैं अर्थात पूर्ण ज्ञान हैं एवं
पीठपर धनुष्य-बाण हैं अर्थात शौर्य है । अर्थात यहां
ब्राह्मतेज एवं क्षात्रतेज, दोनों हैं। जो कोई इनका
विरोध करेगा, उसे शाप देकर अथवा बाणसे
परशुराम पराजित करेंगे, ऐसी उनकी विशेषता है।
ब्राह्मतेज एवं क्षात्रतेज, दोनों हैं। जो कोई इनका
विरोध करेगा, उसे शाप देकर अथवा बाणसे
परशुराम पराजित करेंगे, ऐसी उनकी विशेषता है।
श्रीपरशुरामस्तोत्रं
कराभ्यां परशुं चापं दधानं रेनुकात्मजम |
जामदग्न्यं भजे रामं भार्गवं क्षत्रियान्तकम ||१||
नमामि भार्गवं रामं रेणुकाचित्तनंदनम |
मोचिताम्बार्तिमुत्पातनाशनं क्षत्रनाशनं ||२||
भयार्तस्वजनत्राणतत्परं धर्मतत्परम |
गतवर्गप्रियं शूरं जमदग्निसुतं मतम ||३||
वशीकृतमहादेवं दृप्तभूपकुलान्तकम |
तेजस्विनं कार्तवीर्यनाशनं भवनाशनम ||४||
परशुं दक्षिणे हस्ते वामे च दधतं धनुः |
रम्यं भृगुकुलोत्तंसं घनश्यामं मनोहरम ||५||
शुद्धं बुद्धं महाप्रज्ञामंडितं रणपण्डितं |
रामं श्रीदत्तकरुणाभाजनं विप्ररंजनं ||६||
मार्गणाशोषिताब्ध्यंशं पावनं चिरजीवनं |
य एतानि जपेद्रामनामानि स कृती भवेत ||७||
इति श्रीमद वासुदेवानंदसरस्वती विरचितं श्रीपरशुरामस्तोत्रं संपूर्णम
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