https://youtu.be/gmXzGgyZoII
आरती कीजे हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ।।
जाके बल से गिरिवर कांपे । रोग दोष जाके निकट ना झाँके ।।
अंजनि पुत्र महा बलदाई । संतन के प्रभु सदा सहाई ।।
दे बीरा रघुनाथ पठाए । लंका जारि सिया सुधि लाये ।।
लंका सो कोट समुद्र सी खाई । जात पवन सुत बार ना लायी ।।
लंका जारि असुर संघारे । सियाराम जी के काज संवारे ।।
लक्षमण मुर्छित पड़े सकारे । लाय सजीवन प्राण उबारे ।।
पैठि पताल तोरि जमकारे । अहिरावन की भुजा उखारे ।।
बाएं भुजा असुर दल मारे । दहिने भुजा संत जन तारे ।।
सुर नर मुनि आरती उतारे । जय जय जय हनुमान उचारे ।।
कंचन थाल कपूर लौ छाई । आरती करत अंजना माई ।।
जो हनुमान जी की आरती गावे । बसि बैकुंठ परमपद पावे ।।
जाके बल से गिरिवर कांपे । रोग दोष जाके निकट ना झाँके ।।
अंजनि पुत्र महा बलदाई । संतन के प्रभु सदा सहाई ।।
दे बीरा रघुनाथ पठाए । लंका जारि सिया सुधि लाये ।।
लंका सो कोट समुद्र सी खाई । जात पवन सुत बार ना लायी ।।
लंका जारि असुर संघारे । सियाराम जी के काज संवारे ।।
लक्षमण मुर्छित पड़े सकारे । लाय सजीवन प्राण उबारे ।।
पैठि पताल तोरि जमकारे । अहिरावन की भुजा उखारे ।।
बाएं भुजा असुर दल मारे । दहिने भुजा संत जन तारे ।।
सुर नर मुनि आरती उतारे । जय जय जय हनुमान उचारे ।।
कंचन थाल कपूर लौ छाई । आरती करत अंजना माई ।।
जो हनुमान जी की आरती गावे । बसि बैकुंठ परमपद पावे ।।
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