https://youtu.be/NOQGSsFJg5A
भक्त पुरन्दरदास
सोलहवीं शताब्दी का समय, कर्नाटक के विजयनगर राज्य के उत्कर्ष का शानदार समय था।
विजय नगर के सम्राट कृष्णदेव राय न केवल सांस्कृतिक और धार्मिक बल्कि सामाजिक क्षेत्र
के भी उस दौर के सबसे महानतम राजाओं में प्रसिद्ध थे। इस राज्य का, भक्ति काल को
बुलंदियों पर पहुँचाने का विशेष योगदान है। इसी राज्य की बहुमूल्य भेंट है- श्रेष्ठ कवि,
महान संगीतकार, धर्म का अवतार महान संत श्री पुरन्दरदास।
विजय नगर के सम्राट कृष्णदेव राय न केवल सांस्कृतिक और धार्मिक बल्कि सामाजिक क्षेत्र
के भी उस दौर के सबसे महानतम राजाओं में प्रसिद्ध थे। इस राज्य का, भक्ति काल को
बुलंदियों पर पहुँचाने का विशेष योगदान है। इसी राज्य की बहुमूल्य भेंट है- श्रेष्ठ कवि,
महान संगीतकार, धर्म का अवतार महान संत श्री पुरन्दरदास।
जो स्थान बंगाल में गौरांग महाप्रभु का, महाराष्ट्र में संत तुकाराम का, मारवाड़ में मीरा बाई
का, उत्तर प्रदेश में गोस्वामी तुलसीदास जी का, तमिलनाडु में त्याग राजा का था, वही स्थान
कर्नाटक में भक्त पुरन्दरदास जी का था। उन्हें कर्णाटक संगीत का भीष्म पितामह भी कहा
जाता है।
पुरन्दर दास कर्णाटक संगीत के महान संगीतकार थे। इनकी कई कृतियां समकालीन तेलुगु
गेयकार अन्नमचार्य से प्रेरित थे।
शिलालेखों के प्रमाणानुसार माना जाता है कि पुरन्दर दास का जन्म कर्नाटक के शिवमोगा
जिले में तीर्थहल्ली के पास क्षेमपुरा में 1484 ईस्वी में हुआ था। एक धनी व्यापारी परिवार
में जन्मे, पुरन्दर दास का नाम ‘श्रीनिवास नायक’ रखा गया था। उन्होंने अपने परिवार की
परंपराओं के अनुसार औपचारिक शिक्षा प्राप्त की और संस्कृत, कन्नड़ और पवित्र संगीत में
प्रवीणता हासिल की। अपने पैतृक कारोबार को सम्भालने के बाद, पुरन्दर दास ‘नवकोटि
नारायण’ के रूप में लोकप्रिय हो गए।
30 वर्ष की आयु में उन्होंने अपनी सारी संपत्ति दान कर दी और अपने परिवार के साथ
एक चारण का जीवन व्यतीत करने के लिए घर छोड़ दिया। कालांतर में उनकी भेंट ऋषि
व्यासतीर्थ (माधव दर्शन के मुख्य समर्थकों में से एक) से हुई, जिन्होंने 1525 में उन्हें
दीक्षा देकर एक नया नाम ‘पुरन्दर दास’ दिया।
उन्होंने 4.75 लाख कीर्तनों (भक्ति गीत) की रचना की। उनकी रचनाओं में से अधिकांश
कन्नड़ में हैं और कुछ संस्कृत में हैं। उन्होंने ‘पुरन्दर विट्ठल’ नामक उपनाम से अपनी
रचनाओं पर हस्ताक्षर किए। उनकी रचनाओं में भाव, राग और लय का एक अद्भुत संयोजन
मिलता है। सन् 1564 में 80 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया।
प || गुरुविन गुलामनागुव तनक |
दॊरॆयदण्ण मुकुति ||
परि परि शास्त्रवनोदिदरेनु |
व्यर्थवायितु | मुकुति ||
|| आरु शास्त्रव नोदिदरेनु |
नूरारु पुराणव मुगिसिदरेनु ||
सारन्याय कथॆ | केळिदरेनु |
धीरनंतॆ ता तिरुगदरेनु ||
|| गुरुविन || 1. ||
कॊरळॊळु मालॆ धरिसिदरेनु |
बॆरळॊळु जपमणि ऎणिसिदरेनु |
मरुळनागि ता शरीरकॆ बूदि |
बळिदुकॊंडु ता | तिरुगिदरेनु ||
|| गुरुविन || 2. ||
नारिय भोग अळिसिदरिल्ला |
शरीरकॆ सुखव बिडिसिदरिल्ला ||
मारजनक श्री पुरंदर विठलन |
सेरिसिकॊंडु ता पडॆयुव तनक ||
|| गुरुविन || 3.
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