सोमवार, 22 अगस्त 2022

संगच्छध्वं संवदध्वं..../ समानो मन्त्रः .../ ऋग्वेद / गायन : संजय द्विवेदी

 https://youtu.be/BBk8lVsWny0


संगच्छध्वं संवदध्वं सं वो मनांसि जानताम्।
देवा भागं यथा पूर्वे सञ्जानाना उपासते।।
-ऋग्वेद १०.१९१.२

हम सब एक साथ चले; एक साथ बोले; हमारे मन एक हो | प्रााचीन समय में देवताओं का ऐसा आचरण रहा इसी कारण वे वंदनीय है |

समानो मन्त्रः समितिः समानी समानं मनः सहचित्तमेषाम्।
समानं मन्त्रमभिमन्त्रये वः समानेन वो हविषा जुहोमि।।
-ऋग्वेद १०.१९१.३

हम सबकी प्रार्थना एकसमान हो, भेद-भाव से रहित परस्पर मिलकर रहें, अंतःकरण
मन-चित्त-विचार समान हों । मैं सबके हित के लिए समान मन्त्रोंको अभिमंत्रित करके
हवि प्रदान करता हूँ ।

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