https://youtu.be/SRbcveqWe-U
मो से बोल न बोल मेरी सुन या न सुन...कलाम : हज़रत मौलाना मुग़ीसुद्दीन 'मौज ' चिश्ती
गायन : सामी ब्रदर्स क़व्वाल
मो से बोल न बोल मेरी सुन या न सुन
मैं तो तोहे न छाड़ूँगी ऐ साँवरे
मैं तो तोहे न छाड़ूँगी ऐ साँवरे
मोरी सास ननदिया फिरी सो फिरी
मो से फिर क्यों न जाये सभी गाँव रे
एक तू न फिरे मो से ऐ मेरे प्यारे
मैं भी तो आई तोरी छाँव रे
रही लाज-शरम की बात कहाँ
जब प्रेम के फंदे दियो पाँव रे
बगर के लोग-लुगाई हमको
धरत नाम तो धरो नाम रे
मैं तो अपनी 'मौज' से रहूँगी तोरे संग
मैं तो याही न चूकूँ रहूँ थाम रे
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