बुधवार, 19 अक्टूबर 2022

तस्कीन-ए-दिल-ए-महज़ूँ न हुई वो सई-ए-करम फ़रमा भी गए.../ शायर : असरार-उल-हक़ मजाज़ / गायन : जगजीत सिंह

https://youtu.be/50nfsGInoXo 

तस्कीन-ए-दिल-ए-महज़ूँ हुई वो सई-ए-करम फ़रमा भी गए

इस सई-ए-करम को क्या कहिए बहला भी गए तड़पा भी गए

हम अर्ज़-ए-वफ़ा भी कर सके कुछ कह सके कुछ सुन सके

याँ हम ने ज़बाँ ही खोली थी वाँ आँख झुकी शरमा भी गए

उस महफ़िल-ए-कैफ़-ओ-मस्ती में उस अंजुमन-ए-इरफ़ानी में

सब जाम-ब-कफ़ बैठे ही रहे हम पी भी गए छलका भी गए

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