शनिवार, 15 अक्टूबर 2022

प्रातः वंदन / स्वागत ! स्वागत ! आ‌ओ प्यारे! / श्री हनुमान प्रसाद जी पोद्दार

प्रातः वंदन

 स्वागत !  स्वागत ! आ‌ओ प्यारे! 
    दर्शन  दो    नयनोंके     तारे॥
बालककी मधुरी हाँसी में,
               मोहनकी मीठी बाँसीमें।
मित्रोंकी निःस्वार्थ प्रीतिमें,
            प्रेमीगणकी मिलन-रीतिमें।
नारीके कोमल अन्तरमें,  
                योगीके हृदयायन्तरमें।
वीरोंके रणभूमि-मरणमें,
               दीनोंके संताप-हरणमें।
कर्मठ के  कर्म - प्रवाहमें,
          साधकके सात्विक उछाहमें।
भक्तों के भगवान-शरणमें,
             ज्ञानवानके आत्म-रमणमें।
संतोंकी शुचि सरल भक्ति में,     
              अग्रिदेवकी दाह-शक्ति में।
गंगा की पुनीत धारामें,
              पृथ्वी-पवन, व्योम-तारामें।
भास्करके प्रखर प्रकाशमें,
             शशधरके शीतल विकासमें।
 कोकिलके कोमल सुस्वरमें,
              मत्त  मयूरी  केका - रवमें  ।
विकसित पुष्पोंकी कलियोंमें,
                 काले नखराले अलियोंमें।
सबमें तुम्हें देखते सारे,
                पर न पकड़ पाते मतवारे।
निज पहचान बतादो प्यारे,
            छिपना छोड़ो, जग उजियारे।
स्वागत ! स्वागत ! आ‌ओ  प्यारे!
           मेरे  जीवनके  ‘ध्रुवतारे’।
      (पदरत्नाकर / पद संख्या १०९७)

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