प्रातः वंदन
स्वागत ! स्वागत ! आओ प्यारे!
दर्शन दो नयनोंके तारे॥
बालककी मधुरी हाँसी में,
मोहनकी मीठी बाँसीमें।
मित्रोंकी निःस्वार्थ प्रीतिमें,
प्रेमीगणकी मिलन-रीतिमें।
नारीके कोमल अन्तरमें,
योगीके हृदयायन्तरमें।
वीरोंके रणभूमि-मरणमें,
दीनोंके संताप-हरणमें।
कर्मठ के कर्म - प्रवाहमें,
साधकके सात्विक उछाहमें।
भक्तों के भगवान-शरणमें,
ज्ञानवानके आत्म-रमणमें।
संतोंकी शुचि सरल भक्ति में,
अग्रिदेवकी दाह-शक्ति में।
गंगा की पुनीत धारामें,
पृथ्वी-पवन, व्योम-तारामें।
भास्करके प्रखर प्रकाशमें,
शशधरके शीतल विकासमें।
कोकिलके कोमल सुस्वरमें,
मत्त मयूरी केका - रवमें ।
विकसित पुष्पोंकी कलियोंमें,
काले नखराले अलियोंमें।
सबमें तुम्हें देखते सारे,
पर न पकड़ पाते मतवारे।
निज पहचान बतादो प्यारे,
छिपना छोड़ो, जग उजियारे।
स्वागत ! स्वागत ! आओ प्यारे!
मेरे जीवनके ‘ध्रुवतारे’।
(पदरत्नाकर / पद संख्या १०९७)
दर्शन दो नयनोंके तारे॥
बालककी मधुरी हाँसी में,
मोहनकी मीठी बाँसीमें।
मित्रोंकी निःस्वार्थ प्रीतिमें,
प्रेमीगणकी मिलन-रीतिमें।
नारीके कोमल अन्तरमें,
योगीके हृदयायन्तरमें।
वीरोंके रणभूमि-मरणमें,
दीनोंके संताप-हरणमें।
कर्मठ के कर्म - प्रवाहमें,
साधकके सात्विक उछाहमें।
भक्तों के भगवान-शरणमें,
ज्ञानवानके आत्म-रमणमें।
संतोंकी शुचि सरल भक्ति में,
अग्रिदेवकी दाह-शक्ति में।
गंगा की पुनीत धारामें,
पृथ्वी-पवन, व्योम-तारामें।
भास्करके प्रखर प्रकाशमें,
शशधरके शीतल विकासमें।
कोकिलके कोमल सुस्वरमें,
मत्त मयूरी केका - रवमें ।
विकसित पुष्पोंकी कलियोंमें,
काले नखराले अलियोंमें।
सबमें तुम्हें देखते सारे,
पर न पकड़ पाते मतवारे।
निज पहचान बतादो प्यारे,
छिपना छोड़ो, जग उजियारे।
स्वागत ! स्वागत ! आओ प्यारे!
मेरे जीवनके ‘ध्रुवतारे’।
(पदरत्नाकर / पद संख्या १०९७)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें