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देवराज इंद्र ने देवी महालक्ष्मी की जिस स्तोत्र से स्तुति की, वह स्तोत्र जन कल्याण के लिए
महालक्ष्म्यष्टक के नाम से विख्यात हुआ। श्री महालक्ष्म्यष्टकम् इंद्र देव द्वारा माता महालक्ष्मी
महालक्ष्म्यष्टक के नाम से विख्यात हुआ। श्री महालक्ष्म्यष्टकम् इंद्र देव द्वारा माता महालक्ष्मी
की भक्तिपूर्ण स्तुति है, जिसे पद्म पुराण मे समायोजित किया गया है।महालक्ष्मी की दृष्टि
मात्र पड़ जाने से व्यक्ति श्री युक्त हो जाता है। प्रत्येक मनुष्य को इस स्तोत्र का पाठ अवश्य
करके प्रसन्नता प्राप्त करनी चाहिए।
महालक्ष्म्यष्टकम्
इन्द्र उवाच
नमस्तेsस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते
शङ्ख-चक्र-गदाहस्ते महालक्ष्मी नमोsस्तुते।
नमस्ते गरुढारूढे कोल्ह़ासुर भयङ्ग्करि
सर्वपापहरे देवी महालक्ष्मी नमोsस्तुते।
सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्टभयङ्ग्करि
सर्वदु:खहरे देवी महालक्ष्मी नमोsस्तु ते।
सिद्धि-बुद्धि-प्रदे देवी भुक्ति-मुक्ति- प्रदायिनि
मन्त्रमूर्ते सदादेवी महालक्ष्मी नमोsस्तुते।
आद्यन्तरहिते देवी आद्यशक्ति महेश्वरी
योगजे योगसम्भूते महालक्ष्मी नमोsस्तुते।
स्थूल - सूक्ष्म -महारौद्रे महाशक्ति महोदरे
महापापहरे देवी महा लक्ष्मी नमोsस्तुते।
पद्मासन स्थिते देवी परब्रह्म- स्वरुपिणी
परमेश्वरी जगन्माता महालक्ष्मी नमोsस्तुते।
श्वेताम्बरधरे देवी नानालङ्कार भूषिते
जगत्स्थिते जगन्माता महालक्ष्मी नमोsस्तुते।
महालक्ष्म्यष्टकं स्तोत्रं यः पठेद् भक्तिमान्नरः
सर्वसिद्धिमवाप्नोति राज्यं प्राप्नोति सर्वदा।
एककाले पठेन्नित्यं महापाप्विनाशनं
द्विकालं यः पठेन्नित्यं धन -धान्य समन्वितः।
त्रिकालं यः पठेन्नित्यं महाशत्रुविनाशनम्
महालक्ष्मी भवेन्नित्यं प्रसन्ना वरदा - शुभा।
|| इति इन्द्रकृतं महालक्ष्म्यष्टकं संपूर्णं ||
महालक्ष्म्यष्टक मूल श्लोक एवं हिंदी अर्थ
इन्द्र बोले
नमस्तेऽस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते ।
शङ्खचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥१॥
अर्थ – श्रीपीठ पर स्थित और देवताओं से पूजित होनेवाली हे महामाये !
तुम्हें नमस्कार है। हाथ में शंख, चक्र और गदा धारण करनेवाली हे
महालक्ष्मी ! तुम्हें प्रणाम है।
तुम्हें नमस्कार है। हाथ में शंख, चक्र और गदा धारण करनेवाली हे
महालक्ष्मी ! तुम्हें प्रणाम है।
नमस्ते गरुडारूढे कोलासुरभयङ्करि ।
सर्वपापहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥२॥
अर्थ – गरुड़ पर आरूढ़ हो कोलासुर को भय देने वाली और समस्त पापों
को हरने वाली हे भगवति महालक्ष्मी ! तुम्हें प्रणाम है।
को हरने वाली हे भगवति महालक्ष्मी ! तुम्हें प्रणाम है।
सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्टभयङ्करि ।
सर्वदुःखहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥३॥
अर्थ – सब कुछ जानने वाली, सबको वर देने वाली, समस्त दुष्टों को भय देने
वाली और सबके दुःखों को दूर करने वाली हे देवि महालक्ष्मी ! तुम्हें नमस्कार
है।
वाली और सबके दुःखों को दूर करने वाली हे देवि महालक्ष्मी ! तुम्हें नमस्कार
है।
सिद्धिबुद्धिप्रदे देवि भुक्तिमुक्तिप्रदायिनि ।
मन्त्रपूते सदा देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥४॥
अर्थ – सिद्धि, बुद्धि, भोग और मोक्ष देने वाली हे मन्त्रपूत भगवति महालक्ष्मी !
तुम्हें सदा प्रणाम है।
तुम्हें सदा प्रणाम है।
आद्यन्तरहिते देवि आद्यशक्तिमहेश्वरि ।
योगजे योगसम्भूते महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥५॥
अर्थ – हे देवि ! हे आदि-अंतरहित आदिशक्ते ! हे महेश्वरि ! हे योग से प्रकट
हुई भगवति महालक्ष्मी ! तुम्हें नमस्कार है।
हुई भगवति महालक्ष्मी ! तुम्हें नमस्कार है।
स्थूलसूक्ष्ममहारौद्रे महाशक्तिमहोदरे ।
महापापहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥६॥
अर्थ – हे देवि ! तुम स्थूल, सूक्ष्म एवं महारौद्ररूपिणी हो, महाशक्ति हो,
महोदरा हो और बड़े-बड़े पापों का नाश करने वाली हो। हे देवि महालक्ष्मी !
तुम्हें नमस्कार है।
महोदरा हो और बड़े-बड़े पापों का नाश करने वाली हो। हे देवि महालक्ष्मी !
तुम्हें नमस्कार है।
पद्मासनस्थिते देवि परब्रह्मस्वरूपिणि ।
परमेशि जगन्मातर्महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥७॥
परमेशि जगन्मातर्महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥७॥
अर्थ – हे कमल के आसन पर विराजमान परब्रह्म स्वरूपिणी देवि !
हे परमेश्वरि ! हे जगदम्ब ! हे महालक्ष्मी ! तुम्हें मेरा प्रणाम है।
हे परमेश्वरि ! हे जगदम्ब ! हे महालक्ष्मी ! तुम्हें मेरा प्रणाम है।
श्वेताम्बरधरे देवि नानालङ्कारभूषिते ।
जगत्स्थिते जगन्मातर्महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥८॥
अर्थ – हे देवि ! तुम श्वेत वस्त्र धारण करने वाली और नाना प्रकार के
आभूषणों से विभूषिता हो। सम्पूर्ण जगत में व्याप्त एवं अखिल लोक को
जन्म देने वाली हो। हे महालक्ष्मी ! तुम्हें मेरा प्रणाम है।
आभूषणों से विभूषिता हो। सम्पूर्ण जगत में व्याप्त एवं अखिल लोक को
जन्म देने वाली हो। हे महालक्ष्मी ! तुम्हें मेरा प्रणाम है।
महालक्ष्म्यष्टकं स्तोत्रं यः पठेद्भक्तिमान्नरः ।
सर्वसिद्धिमवाप्नोति राज्यं प्राप्नोति सर्वदा ॥९॥
अर्थ – जो मनुष्य भक्तियुक्त होकर इस महालक्ष्म्यष्टक स्तोत्र का सदा
पाठ करता है, वह सारी सिद्धियों और राज्य वैभव को प्राप्त कर सकता है।
पाठ करता है, वह सारी सिद्धियों और राज्य वैभव को प्राप्त कर सकता है।
एककाले पठेन्नित्यं महापापविनाशनम् ।
द्विकालं यः पठेन्नित्यं धनधान्यसमन्वितः ॥1१०॥
अर्थ – जो प्रतिदिन एक समय पाठ करता है, उसके बड़े-बड़े पापों का
नाश हो जाता है। जो प्रतिदिन दो समय पाठ करता है, वह धन-धान्य से
संपन्न होता है।
नाश हो जाता है। जो प्रतिदिन दो समय पाठ करता है, वह धन-धान्य से
संपन्न होता है।
त्रिकालं यः पठेन्नित्यं महाशत्रुविनाशनम् ।
महालक्ष्मीर्भवेन्नित्यं प्रसन्ना वरदा शुभा ॥११॥
अर्थ – जो प्रतिदिन तीनों कालों में पाठ करता है, उसके महान शत्रुओं का
नाश हो जाता है और उसके ऊपर कल्याणकारिणी वरदायिनी महालक्ष्मी
सदा ही प्रसन्न होती हैं।
नाश हो जाता है और उसके ऊपर कल्याणकारिणी वरदायिनी महालक्ष्मी
सदा ही प्रसन्न होती हैं।
॥ इस प्रकार इन्द्रकृत महालक्ष्मी अष्टकम ( महालक्ष्म्यष्टक ) सम्पूर्ण हुआ।
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