शुक्रवार, 11 नवंबर 2022

बेडु पाको बारो मासा.../ गढ़वाली-कुमाऊनी लोक गीत / गायन : नरेंद्र सिंह नेगी एवं साथी

https://youtu.be/qJO9LL_KofY 

गायन : नरेंद्र सिंह नेगी, नैन नाथ रावल, प्रीतम भर्तवान,
प्रह्लाद मेहरा, मीणा राणा, कल्पना चौहान, दीवान कँवल,
सुरेश प्रसाद सुरीला, प्रकाश रावत, फौजी ललित मोहन जोशी

मूल लिरिक्स 

भुण-भुण दीन आयो,
नरण बुझ तेरी मैत मेरी छैला
बेडु पाको बारो मासा,
ओ नरण काफल पाको चैत मेरी छैला।

आप खाँछे पन-सुपारी,
नरण मैं भी लूँछ बीड़ी मेरी छैला
बेडु पाको बारो मासा,
ओ नरण काफल पाको चैत मेरी छैला,

अल्मोड़ा की नन्दा देवी,
नरण फुल छदुनी पात मेरी छैला
बेडु पाको बारो मासा,
ओ नरण काफल पाको चैत मेरी छैला।

त्यार खुटामा काँटो बुड्या,
नरण मेरी खुटी पीड़ा मेरी छैला,
बेडु पाको बारो मासा,
ओ नरण! काफल पाको चैत मेरी छैला।

अल्मोड़ा को लल्ल बजार,
नरणा लल्ल मटा की सीढ़ी मेरी छैला,
बेडु पाको बारो मासा,
ओ नरण काफल पाको चैत मेरी छैला। 


यह एक गढ़वाली कुमाऊनी लोक गीत है, जो हिमाचल में प्रचलित 
लोक गीतों में प्रमुख लोक गीत है। इस लोक गीत में पत्नी अपने पति 
से विभिन्न उदाहरणों को प्रस्तुत करके अपने पिता (मायका) जाने के 
लिए तार्किक दबाव बनाती है। वह कहती है की भेड़ू का  फल जो 
बारह महीनों में उपलब्ध होता है वहीँ कफल (एक चेरी जैसा मीठा 
फल) तो चैत्र मॉस में ही पकता है। यह फल मुख्य रूप से पहाड़ी 
क्षेत्रों में ही उपलब्ध होता है। भेडू और कफल के फल का उदाहरण 
देकर नायिका अपने घर जाने के बारे में बताती है। इस लोकगीत 
को सर्वप्रथम मोहन उप्रेती और बीएम शाह के द्वारा कंपोज़ किया 
गया है।

बेडु पाको बारा मासा,
बेडु पाको बारा मासा,
ओ नरीना काफ़ल पाको, चैता, मेरी छैला,
ओ नरणी काफ़ल पाको चैत मेरी छैला।

बेडू : यह भी एक तरह का चेरी जैसा फल ही होता है।
काफ़ल : एक तरह का वाइल्ड चेरी फल।
पाको : - पक गया है।
नरणी  : नायिका के लिए नाम का सम्बोधन।

हिंदी अर्थ  : बेडू (एक फल) बारह महीनों में पककर हर वक़्त 
उपलब्ध होता है, जबकि कफल का फल तो चैत्र मास (बसंत) 
में ही पकता है।

भुण-भुण दीन आयो,
नरणा, बुझ तेरी मैत मेरी छैला
ओ नरणी कफल पाको, चैता, मेरी छैला।
बेडु पाको बारा मासा,
ओ नरणी काफल पाको चैत मेरी छैला।

हिंदी अर्थ : बसंत के दिन आ गए हैं, मुझे मेरे माता के घर पर 
ले चलो। (बेडू (एक फल) बारह महीनों में पककर हर वक़्त 
उपलब्ध होता है, जबकि कफल का फल तो चैत्र मस (बसंत) 
में ही पकता है। )

अल्मोड़ा का लाल बाजारा,
लाल माटी की सीड़ी
अल्मोड़ा का लाल बाजारा,
नैरेना लाल माटी की सीड़ी मेरी छैला,
ओ नरणी कफल पाको, चैता, मेरी छैला।
बेडु पाको बारा मासा,
ओ नरणी काफल पाको चैत मेरी छैला।

हिंदी अर्थ : अल्मोड़ा का लाल बाज़ार (विख्यात होने के भाव में ) में 
लाल मिटटी की सीढ़ियां हैं। (बेडू (एक फल) बारह महीनों में पककर 
हर वक़्त उपलब्ध होता है, जबकि कफल का फल तो चैत्र मास (बसंत) 
में ही पकता है। )

पहाड़ा की नंदा देवी,
पहाड़ा की नंदा देवी,
ओ नरन फूल छदुनी पाती मेरी छैला,
बेडु पाको बारा मासा,
ओ नरणी कफल पाको चैत मेरी छैला।

हिंदी अर्थ : पहाड़ों की देवी नंदा है लोग उसे फूल और पत्तियां अर्पित 
करते हैं/चढ़ाते हैं। (बेडू (एक फल) बारह महीनों में पककर हर वक़्त 
उपलब्ध होता है, जबकि कफल का फल तो चैत्र मास (बसंत) में ही 
पकता है। )

आप खाणी (खाँछे) पान सुपारी,
आप खाणी पान सुपारी,
ओ नरन मइके दीनी बीड़ी मेरी छैला,
बेडु पाको बारा मासा,
ओ नरणी कफल पाको चैत मेरी छैला।

हिंदी अर्थ : आप पान सुपारी खाते हो और मुझे बीड़ी दी है। यहाँ पर बीड़ी 
और पान के आनंद लेने पर दोनों का संवाद है। (बेडू (एक फल) बारह 
महीनों में पककर हर वक़्त उपलब्ध होता है, जबकि कफल का फल तो 
चैत्र मास (बसंत) में ही पकता है। )

रुण झुन दिन आयगी,
रुण झुन दिन आयगी,
ओ नरीना मैं ते तू भूलिगी चैता, मेरी छैला,
बेडु पाको बारा मासा,
ओ नरणी कफल पाको चैत मेरी छैला।

हिंदी अर्थ : सुहाने दिन आ गए हैं, ओह मैं तो तुम्हे भूल ही गई। 
(बेडू - एक फल) बारह महीनों में पककर हर वक़्त उपलब्ध होता है, 
जबकि कफल का फल तो चैत्र मास (बसंत) में ही पकता है। )

त्यार खुटामा काँटो बुड्या
नरणा, मेरी खुटी पीड़ा मेरी छैला
बेडु पाको बारा मासा,
ओ नरणी कफल पाको चैत मेरी छैला।

हिंदी अर्थ : अगर कोई कांटा आपके पैर को चुभता है, (बेडू - एक फल) 
बारह महीनों में पककर हर वक़्त उपलब्ध होता है, जबकि कफल का 
फल तो चैत्र मास (बसंत) में ही पकता है। )

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