गुरुवार, 11 जनवरी 2024

जय राम रमा रमनं समनं.../ रचना : तुलसीदास / गायन : माधवी मधुकर झा

 https://youtu.be/_xDYHxCmO3k 


यह स्तुति भगवान शिव द्वारा प्रभु राम के अयोध्या वापस आपने के उपलक्ष्य में गाई गई है। 
जिसके अंतर्गत सभी ऋषिगण, गुरु, कुटुम्बी एवं अयोध्या वासी कैसे अधीर हो कर अपने 
प्रभु रूप राजा राम की प्रतीक्षा कर रहे हैं। तथा श्री राम के आगमन पर कैसे सभी आनन्दित हैं, 
श्रीराम अपने महल को चलते है, आकाश से फूलों की वृष्टि होरही है। सब का वर्णन है इस स्तुति में...

॥ छन्द ॥
जय राम रमा रमनं समनं ।
भव ताप भयाकुल पाहि जनम ॥
अवधेस सुरेस रमेस बिभो ।
सरनागत मागत पाहि प्रभो ॥

राजा राम, राजा राम,

सीता राम,सीता राम ॥

दससीस बिनासन बीस भुजा ।

कृत दूरी महा महि भूरी रुजा ॥
रजनीचर बृंद पतंग रहे ।
सर पावक तेज प्रचंड दहे ॥

राजा राम, राजा राम,

सीता राम,सीता राम ॥

महि मंडल मंडन चारुतरं ।

धृत सायक चाप निषंग बरं ॥
मद मोह महा ममता रजनी ।
तम पुंज दिवाकर तेज अनी ॥

राजा राम, राजा राम,

सीता राम,सीता राम ॥

मनजात किरात निपात किए ।

मृग लोग कुभोग सरेन हिए ॥
हति नाथ अनाथनि पाहि हरे ।
बिषया बन पावँर भूली परे ॥

राजा राम, राजा राम,

सीता राम,सीता राम ॥

बहु रोग बियोगन्हि लोग हए ।

भवदंघ्री निरादर के फल ए ॥
भव सिन्धु अगाध परे नर ते ।
पद पंकज प्रेम न जे करते॥

राजा राम, राजा राम,

सीता राम,सीता राम ॥

अति दीन मलीन दुखी नितहीं ।

जिन्ह के पद पंकज प्रीती नहीं ॥
अवलंब भवंत कथा जिन्ह के ।
प्रिय संत अनंत सदा तिन्ह के ॥

राजा राम, राजा राम,

सीता राम,सीता राम ॥

नहीं राग न लोभ न मान मदा ।

तिन्ह के सम बैभव वा बिपदा ॥
एहि ते तव सेवक होत मुदा ।
मुनि त्यागत जोग भरोस सदा ॥

राजा राम, राजा राम,

सीता राम,सीता राम ॥

करि प्रेम निरंतर नेम लिएँ ।

पड़ पंकज सेवत सुद्ध हिएँ ॥
सम मानि निरादर आदरही ।
सब संत सुखी बिचरंति मही ॥

राजा राम, राजा राम,

सीता राम,सीता राम ॥

मुनि मानस पंकज भृंग भजे ।

रघुबीर महा रंधीर अजे ॥
तव नाम जपामि नमामि हरी ।
भव रोग महागद मान अरी ॥

राजा राम, राजा राम,

सीता राम,सीता राम ॥

गुण सील कृपा परमायतनं ।

प्रणमामि निरंतर श्रीरमनं ॥
रघुनंद निकंदय द्वंद्वघनं ।
महिपाल बिलोकय दीन जनं ॥

राजा राम, राजा राम,

सीता राम,सीता राम ॥

॥ दोहा ॥
बार बार बर मागऊँ हरषी देहु श्रीरंग।
पद सरोज अनपायनी भगति सदा सतसंग॥
बरनि उमापति राम गुन हरषि गए कैलास।
तब प्रभु कपिन्ह दिवाए सब बिधि सुखप्रद बास॥

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