शनिवार, 14 दिसंबर 2019

आशियाँ जल गया गुलिस्ताँ लुट गया...../ 'राज़ इलाहाबादी'

https://youtu.be/klDZYIzZzUE  

आशियाँ जल गया गुलिस्ताँ लुट गया, हम क़फ़स से निकल कर किधर जायेँगे।
इतने मानूस सय्यद से हो गए, अब रिहाई मिली तो मर जाएँगे।।

और कुछ दिन ये दस्तूर-ए-मय-ख़ाना है, तिश्नाकामी के ये दिन गुज़र जाएँगे।
मेरे साक़ी को नज़रें उठाने तो दो, जितने ख़ाली हैं सब जाम भर जाएँगे।।

ऐ नसीम-ए-सहर तुझ को उनकी क़सम, उन से जा कर न कहना मिरा हाल-ए-ग़म।
अपने मिटने का ग़म तो नहीं है मगर, डर ये है उन  के गेसू बिखर जाएँगे।।

अश्क़-ए-ग़म ले के आख़िर कहाँ जाएँ हम, आँसुओं की यहाँ कोई क़ीमत नहीं।
आप ही अपना दामन बढ़ा दीजिए, वर्ना  मोती ज़मीं पर बिखर जाएँगे।।

काले-काले वो गेसू शिकन-दर-शिकन, वो तबस्सुम का आलम चमन-दर-चमन। 
खैंच ली उन की तस्वीर दिल ने मिरे, अब वो दामन बचा कर किधर जाएँगे।।
                                                  
मौत आवाज़ देती है शायद उन्हें, जाने वाले हैं दुनिया से अहले-वफ़ा 
राज़ ऐसे में कोई ग़ज़ल छेड़ दो, क़ाफ़िले ज़िन्दगी के ठहर जाएँगे।।
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