रविवार, 6 दिसंबर 2020

श्रीहरिस्तोत्रं.../ श्रीमत्परमहंसस्वामिब्रह्मानन्दविरचितं / स्वर : जी. गायत्री देवी, एस. सैन्धवी एवं आर. श्रुति

 https://youtu.be/szZrVN6UQM4  

श्रीहरिस्तोत्रं
श्रीमत्परमहंसस्वामिब्रह्मानन्दविरचितं  

जगज्जालपालं चलत्कण्ठमालं
शरच्चन्द्रभालं महादैत्यकालं
नभोनीलकायं दुरावारमायं
सुपद्मासहायम् भजेऽहं भजेऽहं ||

जो सृष्टी का पालन करते हैं, जिनके कंठ में चमकती हुई माला है;
जिनका मुख मंडल चन्द्रमा के सामान है, जो दैत्यों का विनाश करते हैं;
जिनकी काया नील आकाश के सामान है, जिनकी माया पर विजय पाना असंभव है;
जो श्री लक्ष्मी जी के सहायक हैं, मैं उनकी वंदना करता हूँ |

सदाम्भोधिवासं गलत्पुष्पहासं
जगत्सन्निवासं शतादित्यभासं
गदाचक्रशस्त्रं लसत्पीतवस्त्रं
हसच्चारुवक्त्रं  भजेऽहं भजेऽहं ||

जो क्षीर सागर में निवास करते हैं, जिनका मुस्काना खिलते पुष्प के सामान है;
जो जगत के घट घट में निवास करते हैं, जिनकी कांति सैकड़ों सूर्य के सामान है;
जो गदा और चक्र धारण करते हैं, जिनके वस्त्र पीले हैं;
जिनके मुख मंडल पर सदा मुस्कान रहती है, मैं उनकी वंदना करता हूँ |

रमाकण्ठहारं श्रुतिव्रातसारं
जलान्तर्विहारं धराभारहारं
चिदानन्दरूपं मनोज्ञस्वरूपं
ध्रृतानेकरूपं  भजेऽहं भजेऽहं ||

जो श्री लक्ष्मी जी के गले के हार हैं, जो सभी वेदों के सार हैं;
जो क्षीर सागर में निवास करते हैं, जो पृथ्वी के भार को हर लेते हैं;
जिनका रूप चिर काल तक आनंद प्रदान करता है, जो मन को मोह लेते हैं;
जिनके अनगिनत रूप हैं, मैं उनकी वंदना करता हूँ |

जराजन्महीनं परानन्दपीनं
समाधानलीनं सदैवानवीनं
जगज्जन्महेतुं सुरानीककेतुं
त्रिलोकैकसेतुं भजेऽहं भजेऽहं ||

जो जन्म और मरण से परे हैं, जो परम आनंद प्रदान करते हैं;
जो शांति में लीन रहते हैं, जो सदा नवीन रहते हैं;
जो जगत के जन्म के कारण हैं, जो देवताओं के रक्षक हैं;
जो तीनो लोकों के सेतु हैं, मैं उनकी वंदना करता हूँ |

कृताम्नायगानं खगाधीशयानं
विमुक्तेर्निदानं हरारातिमानं
स्वभक्तानुकूलं जगद्व्रुक्षमूलं
निरस्तार्तशूलं भजेऽहं भजेऽहं ||

वेदों ने जिनके गुणों का वर्णन किया है, गरुड़ जिनके वहां हैं;
जो मुक्ति प्रदान करते हैं, जो शिव द्रोहियों का विनाश करते हैं;
जो अपने भक्तों के अनुकूल रहते हैं, जो जगत के वृक्ष के मूल हैं;
जो सभी दुखों का विनाश करते हैं, मैं उनकी वंदना करता हूँ |

समस्तामरेशं द्विरेफाभकेशं
जगद्विम्बलेशं ह्रुदाकाशदेशं
सदा दिव्यदेहं विमुक्ताखिलेहं
सुवैकुण्ठगेहं भजेऽहं भजेऽहं ||

जो सभी देवताओं के नाथ हैं, जिनके केश भ्रमरों की आभा लिए हुए हैं, 
जो जग के सभी अणुओं में समाये हुए हैं, जिनका हृदय आकाश के सामान है;
जिनका आकर सदैव दिव्य है, जो सभी बन्धनों से मुक्त हैं;
वैकुण्ठ जिनका निवास स्थान है, मैं उनकी वंदना करता हूँ |

सुरालिबलिष्ठं त्रिलोकीवरिष्ठं
गुरूणां गरिष्ठं स्वरूपैकनिष्ठं
सदा युद्धधीरं महावीरवीरं
महाम्भोधितीरं भजेऽहं भजेऽहं ||

जो देवताओं से भी शक्तिशाली हैं, जो त्रिलोक में सबसे वरिष्ठ हैं;
जो भारीयों में सबसे भारी हैं, और जो स्वरूप में सबसे छोटे भी हैं;
जो युद्ध में धीर रहते हैं, जो वीरों में सबसे वीर हैं;
जो क्षीरसागर के किनारे पर निवास करते हैं; मैं उनकी वंदना करता हूँ |

रमावामभागं तलानग्रनागं
कृताधीनयागं गतारागरागं
मुनीन्द्रैः सुगीतं सुरैः संपरीतं
गुणौधैरतीतं भजेऽहं भजेऽहं ||

जो श्री लक्ष्मी जी के वाम भाग में शोभित हैं, जो शेष शैया पर शयन करते हैं;
जिनको यज्ञों द्वारा पाया जा सकता है, जो राग अनुराग से परे हैं;
जो मुनियों द्वारा पूजित, और देवताओं द्वारा सेवित हैं,
जो सगुण निर्गुण हैं (सभी गुणों से परे हैं), मैं उनकी वंदना करता हूँ |

फलश्रुति

इदं यस्तु नित्यं समाधाय चित्तं
पठेदष्टकं कण्ठहारम् मुरारे:
स विष्णोर्विशोकं ध्रुवं याति लोकं
जराजन्मशोकं पुनर्विन्दते नो||

जो इस अष्टक को नित्य शांत चित्त हो कर ध्यान और चिंतन करता है;
यह अष्टक जो मुरारी के कंठ हार के सामान है;
वह निसंदेह ही शोक रहित होकर, श्री विष्णु लोक को जाता है;
उसे जरा और जन्म मरण का शोक नहीं होता |

इति श्रीमत्परमहंसस्वामिब्रह्मानन्दविरचितं श्रीहरिस्तोत्रं सम्पूर्णम् 

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