सोमवार, 25 सितंबर 2023

तुम मेरी राखो लाज हरी.../ रचना : सूरदास / गायन : एम. एस. सुब्बुलक्ष्मी

https://youtu.be/uWC2Z4iRAJ8    

तुम मेरी राखो लाज हरी ।
तुम जानत सब अंतरजामी , करनी कछु न करी ॥१ ॥
औगुन मोसे बिसरत नाही , पल छिन घरी घरी ।
सब प्रपंच की पोट बाँधि करि , अपने सीस धरी ॥२ ॥
दारा सुत धन मोह लियो है, सुधि बुधि सब बिसरी ।
सूर पतित को बेगि उबारो ,   अब मेरी नाव भरी ॥३ ॥

शब्दार्थ - 
राखो = रखो , रक्षा करो , बचाओ । 
लाज = लज्जा , प्रतिष्ठा । 
अन्तरजामी = अन्तर्यामी , सबके भीतर रहनेवाला , सबके हृदय की 
बात जाननेवाला , परमात्मा । 
करनी = काम , क्रिया । 
बिसरना = विस्मृत करना , भुलाना , दूर करना । 
घड़ी = दिन - रात का ६० वाँ भाग , २४ मिनट का समय । 
क्षण = पल का चौथाई भाग । 
पल = २४ सेकेण्ड का समय । 
प्रपंच = माया , संसार , उलझन , छल - कपट , झमेला , आडम्बर । 
पोट = पोटली , गठरी । 
दारा = पत्नी । 
मोह लियो है - मोहित कर लिया है, आकर्षित कर लिया है, आसक्त कर लिया है, 
अज्ञानी बना दिया है। 
सुधि = सुध , होश - हवास , चेतना , ज्ञान। 
बुधि = बुद्धि , विवेक , विचार। 
पतित - जो नीच गिरा हुआ हो, पापी, अधम।  
बेगि = वेग , शीघ्र। 
उबारो = बचाओ ।

भावार्थ - 
हे हरि ( हे श्रीकृष्ण , हे भगवन् ) ! आप मेरी प्रतिष्ठा की रक्षा कीजिए। 
हे अन्तर्यामी ! आप सबके हृदयों की सब बातें जाननेवाले हैं, मेरे हृदय की 
भी बातें जानते हैं कि मैंने कभी कुछ भी सत्कर्म नहीं किया ॥१ ॥ 
पल, क्षण या एक घड़ी के लिए भी मैं अपने अवगुणों ( दोषों ) को छोड़ नहीं 
पाता हूँ । मैंने अपने सारे पापों की पोटली बाँधकर उसे अपने सिर पर धारण 
कर लिया है अर्थात् अपने द्वारा किये गये अत्यधिक पापों के फलस्वरूप 
कष्ट भोग रहा ।।2।।  
पत्नी, पुत्र , धन-संपत्ति आदि ने मेरे मन को अपनी ओर खींच लिया है, 
इसी के चलते मैंने अपनी सब सुध-बुध ( होश-हवास, ज्ञान ) को गंवा दिया है। 
संत सूरदासजी कहते हैं कि हे भगवन् ! आप मेरा शीघ्र उद्धार कर दीजिए। 
अब मेरी जीवन- नैया पापरूपी जल से भर गयी है और वह डूबना ही चाहती है।।३।। 

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