सोमवार, 18 सितंबर 2023

मुदाकरात्तमोदकं सदा विमुक्तिसाधकं.../ श्री गणेश पंच रत्न स्तोत्र ! / आदि शंकराचार्य

 https://youtu.be/kJVdjMaObtA?si=T_zDClhQsz4jLuB8

गायन : मनोज्ञा, प्रदान्या, हंसिनी, एवं संकीर्तना 

श्री गणेश पंच रत्न स्तोत्र !
मुदाकरात्तमोदकं सदा विमुक्तिसाधकं
कलाधरावतंसकं विलासिलोकरक्षकम् ।
अनायकैकनायकं विनाशितेभदैत्यकं
नताशुभाशुनाशकं नमामि तं विनायकम् ॥१॥

अनुवाद – मैं श्री गणेश भगवान को बहुत ही विनम्रता के साथ 
अपने हाथों से मोदक प्रदान (समर्पित) करता हूं, जो मुक्ति के 
दाता- प्रदाता हैं। जिनके सिर पर चंद्रमा एक मुकुट के समान 
विराजमान है, जो राजाधिराज हैं और जिन्होंने गजासुर नामक 
दानव हाथी का वध किया था, जो सभी के पापों का आसानी से 
विनाश कर देते हैं, ऐसे गणेश भगवान जी की मैं पूजा करता हूं।

नतेतरातिभीकरं नवोदितार्कभास्वरं
नमत्सुरारिनिर्जरं नताधिकापदुद्धरम् ।
सुरेश्वरं निधीश्वरं गजेश्वरं गणेश्वरं
महेश्वरं तमाश्रये परात्परं निरन्तरम् ॥२॥

अनुवाद – मैं उस गणेश भगवान पर सदा अपना मन और ध्यान 
अर्पित करता हूं जो हमेशा उषा काल की तरह चमकते रहते हैं, 
जिनका सभी राक्षस और देवता सम्मान करते हैं, जो भगवानों 
में सबसे सर्वोत्तम हैं।

समस्तलोकशंकरं निरस्तदैत्यकुञ्जरं
दरेतरोदरं वरं वरेभवक्त्रमक्षरम् ।
कृपाकरं क्षमाकरं मुदाकरं यशस्करं
मनस्करं नमस्कृतां नमस्करोमि भास्वरम् ॥३॥

अनुवाद – मैं अपने मन को उस चमकते हुए गणपति भगवान के 
समक्ष झुकाता हूं, जो पूरे संसार की खुशियों के दाता हैं, जिन्होंने 
दानव गजासुर का वध किया था, जिनका बड़ा सा पेट और हाथी 
की तरह सुन्दर चेहरा है, जो अविनाशी हैं, जो खुशियां और प्रसिद्धि 
प्रदान करते हैं और बुद्धि के दाता – प्रदाता हैं।


अकिंचनार्तिमार्जनं चिरन्तनोक्तिभाजनं
पुरारिपूर्वनन्दनं सुरारिगर्वचर्वणम् ।
प्रपञ्चनाशभीषणं धनंजयादिभूषणम्
कपोलदानवारणं भजे पुराणवारणम् ॥४॥

अनुवाद – मैं उस भगवान की पूजा-अर्चना करता हूं जो गरीबों के सभी 
दुख दूर करते हैं, जो ॐ का निवास हैं, जो शिव भगवान के पहले पुत्र (बेटे) 
हैं, जो परमपिता परमेश्वर के शत्रुओं का विनाश करने वाले हैं, जो विनाश 
के समान भयंकर हैं, जो एक गज के समान दुष्ट और धनंजय हैं और सर्प 
को अपने आभूषण के रूप में धारण करते हैं।

नितान्तकान्तदन्तकान्तिमन्तकान्तकात्मजं
अचिन्त्यरूपमन्तहीनमन्तरायकृन्तनम् ।
हृदन्तरे निरन्तरं वसन्तमेव योगिनां
तमेकदन्तमेव तं विचिन्तयामि सन्ततम् ॥५॥

अनुवाद – मै सदा उस भगवान को प्रतिबिंबित करता हूं जिनके चमकदार 
दन्त (दांत) हैं, जिनके दन्त बहुत सुन्दर हैं, स्वरूप अमर और अविनाशी हैं, 
जो सभी बाधाओं को दूर करते हैं और हमेशा योगियों के दिलों में वास करते हैं।


महागणेशपञ्चरत्नमादरेण योऽन्वहं
प्रजल्पति प्रभातके हृदि स्मरन् गणेश्वरम् ।
अरोगतामदोषतां सुसाहितीं सुपुत्रतां
समाहितायुरष्टभूतिमभ्युपैति सोऽचिरात् ॥६॥

अनुवाद – जो भी भक्त प्रातःकाल में गणेश पंचरत्न स्तोत्र का पाठ करता है, 
जो भगवान गणेश के पांच रत्न अपने शुद्ध हृदय में याद करता है तुरंत ही 
उसका शरीर दाग-धब्बों और दुखों से मुक्त होकर स्वस्थ हो जायगा, वह 
शिक्षा के शिखर को प्राप्त करेगा, जीवन शांति, सुख के साथ आध्यात्मिक 
और भौतिक समृद्धि के साथ सम्पन्न हो जायेगा।
॥ इति श्री गणेशपञ्चरत्नम्स्तोत्रं संपूर्णम् ॥  

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