https://youtu.be/_cRPG4Va8DU?si=M9farlOKdf0ciJCd
मानुस हौं तो वही रसखान, बसौं
मिलि गोकुल गाँव के ग्वारन।
जो पसु हौं तो कहा बस मेरो,
चरौं नित नंद की धेनु मँझारन॥
पाहन हौं तो वही गिरि को, जो
धर्यो कर छत्र पुरंदर धारन।
जो खग हौं तो बसेरो करौं मिलि
कालिंदीकूल कदम्ब की डारन ।।१॥
मिलि गोकुल गाँव के ग्वारन।
जो पसु हौं तो कहा बस मेरो,
चरौं नित नंद की धेनु मँझारन॥
पाहन हौं तो वही गिरि को, जो
धर्यो कर छत्र पुरंदर धारन।
जो खग हौं तो बसेरो करौं मिलि
कालिंदीकूल कदम्ब की डारन ।।१॥
सेष, गनेस, महेस, दिनेस,
सुरेसहु जाहि निरंतर गावैं।
जाहि अनादि अनंत अखंड
अछेद अभेद सुबेद बतावैं।
नारद से सुक ब्यास रहैं
पचि हारे तऊ पुनि पार न पावैं।
ताहि अहीर की छोहरियाँ
छछिया भरि छाछ पै नाच नचावैं।।२।।
सुरेसहु जाहि निरंतर गावैं।
जाहि अनादि अनंत अखंड
अछेद अभेद सुबेद बतावैं।
नारद से सुक ब्यास रहैं
पचि हारे तऊ पुनि पार न पावैं।
ताहि अहीर की छोहरियाँ
छछिया भरि छाछ पै नाच नचावैं।।२।।
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