शनिवार, 27 जुलाई 2024

फ़ासले ऐसे भी होंगे ये कभी सोचा न था.../ अदीम हाशमी / गायन : डाॅ. सोमा घोष

https://youtu.be/PedBObxSzW0


फ़ासले ऐसे भी होंगे ये कभी सोचा न था
सामने बैठा था मेरे और वो मेरा न था

वो कि ख़ुशबू की तरह फैला था मेरे चार-सू
मैं उसे महसूस कर सकता था छू सकता न था

रात भर पिछली सी आहट कान में आती रही
झाँक कर देखा गली में कोई भी आया न था

मैं तिरी सूरत लिए सारे ज़माने में फिरा
सारी दुनिया में मगर कोई तिरे जैसा न था

आज मिलने की ख़ुशी में सिर्फ़ मैं जागा नहीं
तेरी आँखों से भी लगता है कि तू सोया न था

ये सभी वीरानियाँ उस के जुदा होने से थीं
आँख धुँदलाई हुई थी शहर धुँदलाया न था

सैंकड़ों तूफ़ान लफ़्ज़ों में दबे थे ज़ेर-ए-लब
एक पत्थर था ख़मोशी का कि जो हटता न था

याद कर के और भी तकलीफ़ होती थी 'अदीम'
भूल जाने के सिवा अब कोई भी चारा न था

मस्लहत ने अजनबी हम को बनाया था 'अदीम'
वर्ना कब इक दूसरे को हम ने पहचाना न था 

बुधवार, 24 जुलाई 2024

वैद्यनाथाष्टकम् .../ अदि शंकराचार्य / स्वर : शिवश्री स्कन्दप्रसाद

https://youtu.be/teRy1PjJuvs  


श्रीरामसौमित्रिजटायुवेद षडाननादित्य कुजार्चिताय ।
श्रीनीलकंठाय दयामयाय श्रीवैद्यनाथाय नमःशिवाय ॥ १॥

शंभो महादेव शंभो महादेव शंभो महादेव शंभो महादेव ।
शंभो महादेव शंभो महादेव शंभो महादेव शंभो महादेव ॥

गंगाप्रवाहेंदु जटाधराय त्रिलोचनाय स्मर कालहंत्रे ।
समस्त देवैरभिपूजिताय श्रीवैद्यनाथाय नमः शिवाय ॥ २॥

(शंभो महादेव)

भक्तःप्रियाय त्रिपुरांतकाय पिनाकिने दुष्टहराय नित्यम् ।
प्रत्यक्षलीलाय मनुष्यलोके श्रीवैद्यनाथाय नमः शिवाय ॥ ३॥

(शंभो महादेव)

प्रभूतवातादि समस्तरोग प्रनाशकर्त्रे मुनिवंदिताय ।
प्रभाकरेंद्वग्नि विलोचनाय श्रीवैद्यनाथाय नमः शिवाय ॥ ४॥

(शंभो महादेव)

वाक् श्रोत्र नेत्रांघ्रि विहीनजंतोः वाक्श्रोत्रनेत्रांघ्रिसुखप्रदाय ।
कुष्ठादिसर्वोन्नतरोगहंत्रे श्रीवैद्यनाथाय नमः शिवाय ॥ ५॥

(शंभो महादेव)

वेदांतवेद्याय जगन्मयाय योगीश्वरद्येय पदांबुजाय ।
त्रिमूर्तिरूपाय सहस्रनाम्ने श्रीवैद्यनाथाय नमः शिवाय ॥ ६॥

(शंभो महादेव)

स्वतीर्थमृद्भस्मभृतांगभाजां पिशाचदुःखार्तिभयापहाय ।
आत्मस्वरूपाय शरीरभाजां श्रीवैद्यनाथाय नमः शिवाय ॥ ७॥

(शंभो महादेव)

श्रीनीलकंठाय वृषध्वजाय स्रक्गंध भस्माद्यभिशोभिताय ।
सुपुत्रदारादि सुभाग्यदाय श्रीवैद्यनाथाय नमः शिवाय ॥ ८॥

(शंभो महादेव)

बालांबिकेश वैद्येश भवरोग हरेति च ।
जपेन्नामत्रयं नित्यं महारोगनिवारणम् ॥ ९॥

(शंभो महादेव)

॥ इति श्री वैद्यनाथाष्टकम् ॥

रविवार, 21 जुलाई 2024

ऐ जज़्बा-ए-दिल गर मैं चाहूँ हर चीज़ मुक़ाबिल आ जाए.../ बहज़ाद लखनवी / गायन : पूनम चौहान

https://youtu.be/8_gwpcH0t_A?si=rZ8TUa8RBoGc03eU


ऐ जज़्बा-ए-दिल गर मैं चाहूँ हर चीज़ मुक़ाबिल आ जाए 
मंज़िल के लिए दो गाम चलूँ और सामने मंज़िल आ जाए 

ऐ दिल की लगी चल यूँही सही चलता तो हूँ उन की महफ़िल में 
उस वक़्त मुझे चौंका देना जब रंग पे महफ़िल आ जाए 

ऐ रहबर-ए-कामिल चलने को तय्यार तो हूँ पर याद रहे 
उस वक़्त मुझे भटका देना जब सामने मंज़िल आ जाए 

हाँ याद मुझे तुम कर लेना आवाज़ मुझे तुम दे लेना 
इस राह-ए-मोहब्बत में कोई दरपेश जो मुश्किल आ जाए 

अब क्यूँ ढूँडूँ वो चश्म-ए-करम होने दे सितम बाला-ए-सितम 
मैं चाहता हूँ ऐ जज़्बा-ए-ग़म मुश्किल पस-ए-मुश्किल आ जाए 

इस जज़्बा-ए-दिल के बारे में इक मशवरा तुम से लेता हूँ 
उस वक़्त मुझे क्या लाज़िम है जब तुझ पे मिरा दिल आ जाए 

ऐ बर्क़-ए-तजल्ली कौंध ज़रा क्या मुझ को भी मूसा समझा है 
मैं तूर नहीं जो जल जाऊँ जो चाहे मुक़ाबिल आ जाए 

कश्ती को ख़ुदा पर छोड़ भी दे कश्ती का ख़ुदा ख़ुद हाफ़िज़ है 
मुश्किल तो नहीं इन मौजों में बहता हुआ साहिल आ जाए

शुक्रवार, 19 जुलाई 2024

वो हम-सफ़र था मगर उस से हम-नवाई न थी.../ नसीर तुराबी / गायन : ज़ायरा अली

https://youtu.be/QOsFnzW4EMY  


वो हम-सफ़र था मगर उस से हम-नवाई न थी
कि धूप छाँव का आलम रहा जुदाई न थी

न अपना रंज न औरों का दुख न तेरा मलाल
शब-ए-फ़िराक़ कभी हम ने यूँ गँवाई न थी

मोहब्बतों का सफ़र इस तरह भी गुज़रा था
शिकस्ता-दिल थे मुसाफ़िर शिकस्ता-पाई न थी

अदावतें थीं, तग़ाफ़ुल था, रंजिशें थीं बहुत
बिछड़ने वाले में सब कुछ था, बेवफ़ाई न थी

बिछड़ते वक़्त उन आँखों में थी हमारी ग़ज़ल
ग़ज़ल भी वो जो किसी को अभी सुनाई न थी

किसे पुकार रहा था वो डूबता हुआ दिन
सदा तो आई थी लेकिन कोई दुहाई न थी

कभी ये हाल कि दोनों में यक-दिली थी बहुत
कभी ये मरहला जैसे कि आश्नाई न थी

अजीब होती है राह-ए-सुख़न भी देख 'नसीर'
वहाँ भी आ गए आख़िर, जहाँ रसाई न थी 

रविवार, 14 जुलाई 2024

ऐ ज़ब्त देख 'इश्क़ की उनको ख़बर न हो.../ शायर : अमीर मीनाई / प्रस्तुति : शक़ील अहमद शाह मशहदी

https://youtu.be/Q4nM3Dny4DU


ऐ ज़ब्त देख 'इश्क़ की उन को ख़बर न हो 
दिल में हज़ार दर्द उठे आँख तर न हो 

मुद्दत में शाम-ए-वस्ल हुई है मुझे नसीब 
दो-चार साल तक तो इलाही सहर न हो

इक फूल है गुलाब का आज उन के हाथ में 
धड़का मुझे ये है कि किसी का जिगर न हो 

ढूँडे से भी न मअ'नी-ए-बारीक जब मिला 
धोका हुआ ये मुझ को कि उस की कमर न हो 

उल्फ़त की क्या उमीद वो ऐसा है बेवफ़ा 
सोहबत हज़ार साल रहे कुछ असर न हो 

तूल-ए-शब-ए-विसाल हो मिस्ल-ए-शब-ए-फ़िराक़ 
निकले न आफ़्ताब इलाही सहर न हो

गुरुवार, 11 जुलाई 2024

नमामि मातृदेवतां.../ स्वर : पण्डित शान्तनु भट्टाचार्य

 https://youtu.be/s1luyp3gaWU


अनन्तरूपधारिणीं 
चराचरे विहारिणीं 
स्मितै सदात्महारिणी 
नमामि मातृदेवतां

सुमंगलां सुनिर्मलां 
महोज्ज्वलां महाबलां 
तमोविनोदिनीं कलां
नमामि मातृदेवतां

समस्त लोक शंकरीं
चिदंम्बरात्मनिर्झरीं
दिवंकरीं  शिवंकरीं
नमामि मातृदेवतां

वराभयप्रदायिनीं  
अभव्यभीतिभायिनीं 
प्रसादनप्रदायिनीं
नमामि मातृदेवतां 

प्रभातपद्मशायिनीं  
सुधारसप्रपायिनीं 
सुभाग्यसंविधायिनीं  
नमामि मातृदेवतां 

हृदि स्थितां समाश्रितां  
समर्चितां सुवन्दितां 
समर्पितात्मसेवितां 
नमामि मातृदेवतां 




मंगलवार, 9 जुलाई 2024

चलो मन वृन्दावन की ओर.../ गायन : कौशिकी चक्रवर्ती

https://youtu.be/ugzbXaMB7gk 

चलो मन वृन्दावन की ओर,
प्रेम का रस जहाँ छलके है,
कृष्णा नाम से भोर,
चलो मन वृंदावन की ओर ॥
भक्ति की रीत जहाँ पल पल है,
प्रेम प्रीत की डोर,
राधे राधे जपते जपते,
दिख जाए चितचोर,
चलो मन वृंदावन की ओर ॥

उषा की लाली के संग जहाँ,
कृष्णा कथा रस बरसे,
राधा रास बिहारी के मंदिर,
जाते ही मनवा हरषे,
ब्रिज की माटी चंदन जैसी,
मन हो जावे विभोर,
चलो मन वृंदावन की ओर ॥

वन उपवन में कृष्णा की छाया,
शीतल मन हो जाए,
मन भी हो जाए अति पावन,
कृष्णा कृपा जो पाए,
नारायण अब शरण तुम्हारे,
कृपा करो इस ओर,
चलो मन वृंदावन की ओर ॥

रविवार, 7 जुलाई 2024

ऐ चंदा मामा, आरे आवा पारे आवा.../ गायन : दीपाली सहाय

https://youtu.be/AT_RTjiV33Y  


चंदा मामा आरे आवा पारे आवा 
नदिया किनारे आवा ।
सोना के कटोरिया में 
दूध भात लै लै आवा
बबुआ के मुंहवा में घुटूं ।।

आवाहूं उतरी आवा हमारी मुंडेर, 
कब से पुकारिले भईल बड़ी देर ।
भईल बड़ी देर हां बाबू को लागल भूख ।
ऐ चंदा मामा ।।

मनवा हमार अब लागे कहीं ना, 
रहिलै देख घड़ी बाबू के बिना
एक घड़ी हमरा को लागै सौ जून ।
ऐ चंदा मामा ।।

शुक्रवार, 5 जुलाई 2024

लस्सी ते चा.../ लस्सी और चाय / नज्म : अनवर मसूद

https://youtu.be/OTF2sKLHojA

लस्सी ते चा (अर्थ: लस्सी और चाय) अनवर मसूद द्वारा रचित पंजाबी भाषा की एक 
प्रसिद्ध व्यंग्य कविता है जो भारतीय और पाकिस्तानी पंजाब दोनों में लोकप्रिय है। 
इस कविता में उत्तर भारत और पाकिस्तान के दोनों लोकप्रिय पेय, लस्सी और चाय 
का एक काल्पनिक विवाद व्यंग्यपूर्ण अंदाज़ में दर्शाया है।

लस्सी
मैं सोहनी मैं गोरी गोरी तू काली कलवत्ती
मैं नींदर दा सुख सुनेहर्रा तू जगराते पत्ती
जिस वेले मैं छैं चें चन्ने अंदर चलकां
केहर्रा संभाले मेरियां लिश्कां कोन संभाले ढलकां
रंग वी मेरा मक्खन वर्ग रूप वी मेरा सुच्चा
दूध मलाई मान पियो मेरे मेरा असला ऊंचा
जेहर्रा मेनू रिर्रकां बेठे हमें दे वारी जावां
खर्रके ढोल मधानी वाला मैं विच भंगरे पावन
मैं लोकां दी सेहत बनावां तू पै सेहत वागरेन
मैं पै ठंड कलेजे पावन तू पै सीने सारें
चा
पे गाई ऐं नी माई बग्गो मेरे मगहर धागने
मेरियां सुरकियां भरदे जहर्रे ओहो लोक सियाने
मेरा हुस्न पचानन जहरे दिल मैं ओन्हां दे थग्गन
मेरा रंग कलिखान उत्ते लैला वारगी लगान
पिंडदे दी मुख्य पीर गवावन जेरोन थाकेवें भोरां थारयां होयां
जुस्यां नू मुख्य मिथियां करन तकोरां
तू ऐन खांग ज़ुकाम ते नज़ला की मुख्य जिन जिन दसां
मेरे निग्घे घुट उता अरन चरहियां होइयान कसान
कज्जी रहो तू कुज्जे अंदर तेनु की तक्लीफां
जे मैं सोहनियां मैंजान उत्ते राखन पै तशरीफां
लस्सी
अपनी जात कुरित्तां होवे मिसरी नाल ना लरिइए
नी कलमुहिये, कौररिये, टट्टिये, भेरिये, नखरे सररिये
ना कोई सीरत ना कोई सूरत मौन कोई ना माथा
तू ते इंजे जापें जियॉनकर जिन्न पहाड़ोन लता
मेनु पुच हकीकत अपनी बानी फिरैन तू रानी
शुन शुन करदा हौके भरदा कौररा तत्ता पानी
भूख तारे दी दुश्मन वरन की तेरी भलियै
बंद्यां दी तू चारबी खोरैन नाल करियां वदियाई
तेरा चोया धेह के जेरहे कपरे नू तरकावे
गाछी सबुन खुर जाए दघ ना उस दा जाए
चा 
मेरे सर तू भांडे बनने ले हुण मेरी वारी
तेरियां वी करतूतन जाने वसदी दुनिया सारी
तेनु पीने लाई जे कोई भांडे दे विच पावे
थिंडा होजाए भांडदा नाले मुश्क ना उस दी जावे
तेनु मुध कदीम तो वागियां रब्ब दियां एह मारन
तेरे कोलों खट्टियां लोकां खटियां जेहियां डकारां
मेरा घुट्ट भरे ते अरिये जेही उद्दारी मारे
अग्गे लंघ जाए सोच दा पंछी पिछे रह जां
तारे मेनू पी के शायर करदे गल्लां सुचियां खारियां
मैं ते ख्याल दी डोरी उत्ते नित नचावां परियां
मैं की जाना तेरियां बरहरकां मैं कि समझावन तेनु
दूध करे इन्साफ ते एह मंजूर ए बीबी मेनू

दुध
एत्थे मुख्य की बोलां कुरीयो मसला ए दहड्डा ओखा
गुंझल जहरा पाया जे नहीं खुलना एहदा सोखा
घर दा जी ए हुण ते चा वी ए वी चंगी लग्गे
लस्सी मेरी जम्मी जाई पुतरां नालों अग्गे
डोवेन मेरी पट ते इज्जत करन मैं किंज नखैर्रा
सहैरर लेया जे जग्गों वखरा एह की तुस्सी बखैरा
किन्हु अज सियानी आखां किन्नु आखां झल्ली
दोहान पासे रिश्ता मेरा मेनू खिच दुवल्ली
सक्की जेही मतरै हुंदी चेंज होन जे मापे
मेरा वोट हे दोहां वाले निब्बर लो तुस्सी आपे
चा
मैं तां निब्बर लान गी चाचा, एनहुं कल्लम कल्ली
शूकर खुदा दा मैं न होई एहदे वरगी झल्ली
शहरां विच नहीं एहनु कोई किधरे वी मौन लांदा
हर कोई मेरियां सिफतां करदा सदके हो हो जांदा

लस्सी
सांभी रहो नी चेनक बेगम थप्पी रख वडियाइयां
मैं की दस्सां घर घर जहरियां तुड़ चुवतियां लइयां
गल्लां करदी थकदी नहीं तू जीभ नू लाली ताला
खंडड वी कौररी किती आ ते दुध वी कीटो ई काला
बुहती बुर बुर ना कर बीबी ना कर एड्डा धक्का
तेरे जेही कोचज्जी कोहझी मेरे नाल मटक्का
मेरी चौधर चार चोफेरे तेरी मानता थोरी
मैं देसां दी सूबे रानी तू परदेसन छोहरी
देस पराए रानी खान दी तू साली बन बेथी
मंगन आई अग्ग ते आपों घर वाली बन बेथी
रब्ब करे नी इक्को वारी घुट भरे कोई तेरा
वी अंग्रेज़ां वांगों पुत्त्या जाए डेरा