रविवार, 21 जुलाई 2024

ऐ जज़्बा-ए-दिल गर मैं चाहूँ हर चीज़ मुक़ाबिल आ जाए.../ बहज़ाद लखनवी / गायन : पूनम चौहान

https://youtu.be/8_gwpcH0t_A?si=rZ8TUa8RBoGc03eU


ऐ जज़्बा-ए-दिल गर मैं चाहूँ हर चीज़ मुक़ाबिल आ जाए 
मंज़िल के लिए दो गाम चलूँ और सामने मंज़िल आ जाए 

ऐ दिल की लगी चल यूँही सही चलता तो हूँ उन की महफ़िल में 
उस वक़्त मुझे चौंका देना जब रंग पे महफ़िल आ जाए 

ऐ रहबर-ए-कामिल चलने को तय्यार तो हूँ पर याद रहे 
उस वक़्त मुझे भटका देना जब सामने मंज़िल आ जाए 

हाँ याद मुझे तुम कर लेना आवाज़ मुझे तुम दे लेना 
इस राह-ए-मोहब्बत में कोई दरपेश जो मुश्किल आ जाए 

अब क्यूँ ढूँडूँ वो चश्म-ए-करम होने दे सितम बाला-ए-सितम 
मैं चाहता हूँ ऐ जज़्बा-ए-ग़म मुश्किल पस-ए-मुश्किल आ जाए 

इस जज़्बा-ए-दिल के बारे में इक मशवरा तुम से लेता हूँ 
उस वक़्त मुझे क्या लाज़िम है जब तुझ पे मिरा दिल आ जाए 

ऐ बर्क़-ए-तजल्ली कौंध ज़रा क्या मुझ को भी मूसा समझा है 
मैं तूर नहीं जो जल जाऊँ जो चाहे मुक़ाबिल आ जाए 

कश्ती को ख़ुदा पर छोड़ भी दे कश्ती का ख़ुदा ख़ुद हाफ़िज़ है 
मुश्किल तो नहीं इन मौजों में बहता हुआ साहिल आ जाए

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