रविवार, 14 जुलाई 2024

ऐ ज़ब्त देख 'इश्क़ की उनको ख़बर न हो.../ शायर : अमीर मीनाई / प्रस्तुति : शक़ील अहमद शाह मशहदी

https://youtu.be/Q4nM3Dny4DU


ऐ ज़ब्त देख 'इश्क़ की उन को ख़बर न हो 
दिल में हज़ार दर्द उठे आँख तर न हो 

मुद्दत में शाम-ए-वस्ल हुई है मुझे नसीब 
दो-चार साल तक तो इलाही सहर न हो

इक फूल है गुलाब का आज उन के हाथ में 
धड़का मुझे ये है कि किसी का जिगर न हो 

ढूँडे से भी न मअ'नी-ए-बारीक जब मिला 
धोका हुआ ये मुझ को कि उस की कमर न हो 

उल्फ़त की क्या उमीद वो ऐसा है बेवफ़ा 
सोहबत हज़ार साल रहे कुछ असर न हो 

तूल-ए-शब-ए-विसाल हो मिस्ल-ए-शब-ए-फ़िराक़ 
निकले न आफ़्ताब इलाही सहर न हो

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