शुक्रवार, 14 फ़रवरी 2025

उन की तरफ़ से तर्क-ए-मुलाक़ात हो गई.../ शायर : क़मर जलालवी / गायन : हदीका कियानी

https://youtu.be/x-fsPm9e2eg  


उन की तरफ़ से तर्क-ए-मुलाक़ात हो गई
हम जिस से डर रहे थे वही बात हो गई

आईना देखने में नई बात हो गई
उन से ही आज उन की मुलाक़ात हो गई

तय उन से रोज़-ए-हश्र मुलाक़ात हो गई
इतनी सी बात कितनी बड़ी बात हो गई

कम-ज़र्फ़ी-ए-हयात से तंग आ गया था मैं
अच्छा हुआ क़ज़ा से मुलाक़ात हो गई

दिन में भटक रहे हैं जो मंज़िल की राह से
ये लोग क्या करेंगे अगर रात हो गई

आए हैं वो मरीज़-ए-मोहब्बत को देख कर
आँसू बता रहे हैं कोई बात हो गई

था और कौन पूछने वाला मरीज़ का
तुम आ गए तो पुर्सिश-ए-हालात हो गई

ऐ बुलबुल-ए-बहार-ए-चमन अपनी ख़ैर माँग
सय्याद-ओ-बाग़बाँ में मुलाक़ात हो गई

जब ज़ुल्फ़ याद आ गई यूँ अश्क बह गए
जैसे अँधेरी रात में बरसात हो गई

गुलशन का होश अहल-ए-जुनूँ को भला कहाँ
सहरा में पड़ रहे तो बसर रात हो गई

दर-पर्दा बज़्म-ए-ग़ैर में दोनों की गुफ़्तुगू
उट्ठी उधर निगाह इधर बात हो गई

कब तक 'क़मर' हो शाम के वा'दे का इंतिज़ार
सूरज छुपा चराग़ जले रात हो गई

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