बुधवार, 19 फ़रवरी 2025

किसी दर्दमंद के काम आ किसी डूबते को उछाल दे.../ गायन : मुहम्मद नवाज़ / सूफ़ी अताउल्लाह सत्तारी

https://youtu.be/MpQ5r6qqvq0  


किसी दर्दमंद के काम आ किसी डूबते को उछाल दे
ये निगाह-ए-मस्त की मस्तियाँ किसी बद-नसीब पे डाल दे


मुझे मस्जिदों की ख़बर नहीं मुझे मंदिरों का पता नहीं
मिरी 'आजिज़ी को क़ुबूल कर मुझे और दर्द-ओ-मलाल दे

ये मय-कशी का ग़ुरूर है ये मेरे दिल का सुरूर है
मेरे मय-कदा को दवाम हो मेरे साक़ियों को जमाल दे

मैं तिरे विसाल को क्या करूँ मेरी वहशतों की ये मौत है
हो तिरा जुनूँ मुझे पुर-'अता मुझे जन्नतों से निकाल दे

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