सोमवार, 13 दिसंबर 2010

वो उसका आना मुझे लूट के जाना ऐसा

ग़ज़ल 

- अरुण मिश्र.

वो  उसका  आना,  मुझे  लूट के  जाना ऐसा।
था   मुहब्बत  का,  मेरे  पास   खजाना ऐसा॥


हुआ अमीर वो, मुझको भी कुछ कमी न हुई।
अज़ीब  लगता  है,  पर   है  ही फ़साना ऐसा॥


हज़ार   बार   चले ,   तो   हज़ार  बार   लगे।
अचूक  बान   नयन  के ;  है  निशाना  ऐसा॥


न कोई ज़ुल्म,न ज़ालिम,जियें सुक़ून से लोग।
ऐ  काश ! आये  कभी,  कोई  ज़माना  ऐसा॥


’अरुन’  ये  गहने  गुनों के,  बहुत  पुराने  हैं।
कोई    खरीदेगा   क्यूँ ,  माल  पुराना  ऐसा॥

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2 टिप्‍पणियां:

  1. ’अरुन’ ये गहने गुनों के, बहुत पुराने हैं।
    कोई खरीदेगा क्यूँ , माल पुराना ऐसा॥

    गुणग्राहकता अब बची ही कहाँ है ???? दुर्गुण ही जहाँ सद्गुण का भेष धार बैठे है !!!

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  2. समर्थन के लिए आभार अमित जी |
    -अरुण मिश्र .

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