- अरुण मिश्र.
वो उसका आना, मुझे लूट के जाना ऐसा।
था मुहब्बत का, मेरे पास खजाना ऐसा॥
हुआ अमीर वो, मुझको भी कुछ कमी न हुई।
अज़ीब लगता है, पर है ही फ़साना ऐसा॥
हज़ार बार चले , तो हज़ार बार लगे।
अचूक बान नयन के ; है निशाना ऐसा॥
न कोई ज़ुल्म,न ज़ालिम,जियें सुक़ून से लोग।
ऐ काश ! आये कभी, कोई ज़माना ऐसा॥
’अरुन’ ये गहने गुनों के, बहुत पुराने हैं।
कोई खरीदेगा क्यूँ , माल पुराना ऐसा॥
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’अरुन’ ये गहने गुनों के, बहुत पुराने हैं।
जवाब देंहटाएंकोई खरीदेगा क्यूँ , माल पुराना ऐसा॥
गुणग्राहकता अब बची ही कहाँ है ???? दुर्गुण ही जहाँ सद्गुण का भेष धार बैठे है !!!
समर्थन के लिए आभार अमित जी |
जवाब देंहटाएं-अरुण मिश्र .