- अरुण मिश्र
मुश्क़िल क्या है, मुश्क़िल कहना।
मुश्क़िल तो है, आसां रहना।।
यूँ ही कुछ कम, मुश्क़िलात हैं?
फिर क्यू मुश्क़िल कहना-सुनना।।
ऊँची - ऊँची मीनारों को।
आज नहीं तो, कल है ढहना।।
रोटी के कुन्दन की ख़ातिर।
है जीवन - भट्ठी में दहना।।
फूलों के अचकन उतार कर।
परियों ने क्यूँ बख्तर पहना??
नाज़ुक, नर्म, गुलबदन ग़ज़लें।
उफ़ ! लफ़्ज़ों का भारी गहना।।
आसां शेर' नहीं कह सकते।
अगर ’अरुन’ तो चुप ही रहना।।
*
मुश्क़िल तो है, आसां रहना।।
यूँ ही कुछ कम, मुश्क़िलात हैं?
फिर क्यू मुश्क़िल कहना-सुनना।।
ऊँची - ऊँची मीनारों को।
आज नहीं तो, कल है ढहना।।
रोटी के कुन्दन की ख़ातिर।
है जीवन - भट्ठी में दहना।।
फूलों के अचकन उतार कर।
परियों ने क्यूँ बख्तर पहना??
नाज़ुक, नर्म, गुलबदन ग़ज़लें।
उफ़ ! लफ़्ज़ों का भारी गहना।।
आसां शेर' नहीं कह सकते।
अगर ’अरुन’ तो चुप ही रहना।।
@ मुश्क़िल तो है, आसां रहना।।
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही फरमाया है आपने, आज कितनी मुश्किल जिन्दगी बना ली है सभी ने ................हर कोई परेशान है,
समर्थन के लिए आभार अमित जी |
जवाब देंहटाएं-अरुण मिश्र .